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6 Feb 2024 · 1 min read

हरेला

फिर आया है
मायके से
हरेले का तिनड़ा
लाया है साथ लिपटी
यादें

यादें!
माँ की-बाबा की
सावन की
रिमझिम में भीगते
झगड़ते भाई-बहनों की

पानी भरे आंगन में
काग़ज़ की नाव चलाते
कीचड़ भरे पैरों से
छप-छप कर
कपड़ों पर उड़ाते छींटे

माँ के जवान हाथ का
करारा तमाचा
आँसू पोंछता भैया
और मुँह चिढ़ाती
बहनें

अमराई के झूले
सखियाँ और
सावन के गीत

गलियों के मोड़ों पर
खड़े फब्तियाँ कसते
गाँव के जवान लड़के

कुएँ से पानी खींचते
लचकती कमर

उठती डोली को देख
सिर धुनता भैया
सभी कुछ तो
ले आया है
हरेले का तिनड़ा

उम्र की सारी सीमाएँ
तोड़कर
मैं जा पहुँची हूँ
अपने हरेले तिनड़े के पास
केवल यह कहने
‘हरेले तिनड़े
हर वर्ष
यूँ ही आते रहना
जब तक मैं हूँ-जब तक मैं रहूँ’

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