Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
0
Notifications
Settings
Dr MusafiR BaithA
31 Followers
Follow
Report this post
31 Jan 2024 · 1 min read
यक्षिणी-12
यक्षिणी यक्षिणी खेलते रहो
खोलते रहो
ख़लिश अपनी
ऐ खलकामी प्रगतिशील!
Competition:
Poetry Writing Challenge-2
Language:
Hindi
Tag:
कविता
Like
Share
128 Views
Share
Facebook
Twitter
WhatsApp
Copy link to share
Copy
Link copied!
Books from Dr MusafiR BaithA
View all
नये मुहावरे का चाँद
Musafir Baitha
You may also like these posts
पढ़े साहित्य, रचें साहित्य
संजय कुमार संजू
कविता: मेरी अभिलाषा- उपवन बनना चाहता हूं।
Rajesh Kumar Arjun
𑒚𑒰𑒧-𑒚𑒰𑒧 𑒁𑒏𑒩𑓂𑒧𑒝𑓂𑒨𑒞𑒰 𑒏, 𑒯𑒰𑒙 𑒮𑒥 𑒪𑒰𑒑𑒪 𑒁𑒕𑒱 !
DrLakshman Jha Parimal
मिल रही है
विजय कुमार नामदेव
ज़िंदगी का दस्तूर
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
कर्ण छंद विधान सउदाहरण
Subhash Singhai
फिर सिमट कर बैठ गया हूं अपने में,
Smriti Singh
सुप्रभात
डॉक्टर रागिनी
" हल "
Dr. Kishan tandon kranti
स्वतंत्रता दिवस
Ayushi Verma
बड़े साहब : लघुकथा
Dr. Mulla Adam Ali
सांसों से आईने पर क्या लिखते हो।
Taj Mohammad
"" मामेकं शरणं व्रज ""
सुनीलानंद महंत
हम तुमको अपने दिल में यूँ रखते हैं
Shweta Soni
नफ़रत
विजय कुमार अग्रवाल
मजदूर का दर्द (कोरोना काल)– संवेदना गीत
Abhishek Soni
हर रोज वहीं सब किस्से हैं
Mahesh Tiwari 'Ayan'
ये जो नफरतों का बीज बो रहे हो
Gouri tiwari
दीवार -
Karuna Bhalla
बहुत मुश्किल होता है
हिमांशु Kulshrestha
- तुम्हे गुनगुनाते है -
bharat gehlot
https://daga.place/
trangdaga
#लघुकथा-
*प्रणय*
अगीत कविता : मै क्या हूँ??
Sushila joshi
श्रंगार
Vipin Jain
*बसंत*
Shashank Mishra
❤️ मिलेंगे फिर किसी रोज सुबह-ए-गांव की गलियो में
शिव प्रताप लोधी
जून की कड़ी दुपहरी
Awadhesh Singh
3613.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
सब कुछ लुटा दिया है तेरे एतबार में।
Phool gufran
Loading...