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27 Jan 2024 · 1 min read

टूटने का मर्म

कौन समझा है अब तक टूटने का मर्म।
लोग दुआयें मांगते हैं ,टूटते सितारों से भी।

माना कि ये इश्क़ ,आग का इक दरिया है
दीवाने चल देते हैं, मगर इन अंगारों पे भी।

टूटे दिल की दुआ ,कभी खाली नहीं जाती
बहुत लिखा है ऐसा , साहित्यकारों ने भी।

इज्तिराब ए शौक हमसे न पूछिये जनाब
बहुत तहम्मुल जमा है ,मेरे संस्कारों में भी।

गुनाह कोई भी उनके सर न कभी आये
खड़े हैं हम , गुनाहगार की कतारों में भी।

सर्द लहज़ा बता देता है,रिश्ते की तासीर
खुदगर्जी रखे चाहे उन्हें तीमारदारों में भी।

मुक्मल न हो दुआ ,तो बदल देते हो खुद
उम्मीद फिर रखते हो, खिदमतगारों से भी।

सुरिंदर कौर

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