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23 Jan 2024 · 1 min read

“क्रान्ति”

“क्रान्ति”
क्रान्ति न जनमती है न मरती है
हृदय में छुपी रहती है,
अत्याचार की सीमाएँ लांघने पर
बन्दूक की नली से निकलती है।
ज्वाला बनकर जलती है
खून में पकती-उबलती है,
जरा गौर से देखना
वो मजदूरों के पसीने में पलती है।
-डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति

4 Likes · 3 Comments · 292 Views
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