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1 Jan 2024 · 7 min read

*स्वतंत्रता आंदोलन में रामपुर निवासियों की भूमिका*

स्वतंत्रता आंदोलन में रामपुर निवासियों की भूमिका
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लेखक : रवि प्रकाश पुत्र श्री राम प्रकाश सर्राफ ,बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज) रामपुर, उत्तर प्रदेश मोबाइल 99976 15451
ई-मेल raviprakashsarraf@gmail.com
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स्वतंत्रता आंदोलन में पूरे देश की भाँति रामपुर का योगदान भी किसी से कम नहीं था । रामपुर एक नवाबी शासन के द्वारा नियंत्रित रियासत थी और यहाँ इस प्रकार दोहरी गुलामी हुआ करती थी । ऐसी परिस्थितियों में रामपुर में आजादी की दीपशिखा प्रज्वलित करना और भी कठिन था । फिर भी रामपुर के स्वतंत्रता सेनानियों ने हिम्मत नहीं हारी और आजादी का झंडा बुलंद किया ।
मौलाना मोहम्मद अली जौहर 10 दिसंबर 1878 को रामपुर में ही जन्मे थे। आपके भाई मौलाना शौकत अली का नाम भी उल्लेखनीय है । दोनों भाइयों ने ‘अली बंधु’ के नाम से भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी छाप छोड़ी । कांग्रेस के साथ मौलाना मोहम्मद अली जौहर की घनिष्ठता हुई और 1923 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर आप पहुंचे। अली बंधुओं की माता बी अम्मा भी स्वतंत्रता की भावना में किसी से कम नहीं थीं। आपने गाँधी जी को खादी की टोपी भेंट की थी और इतिहास में वह ‘गाँधी टोपी’ के नाम से विख्यात हुई।
जनता और अंग्रेज हकूमत के बीच में दीवार बनकर नवाबी हकूमत खड़ी हुई थी। इसके खिलाफ अंजुमन महाजिरीन, रामपुर का गठन अगस्त 1933 में बरेली में हुआ । कारण यह था कि रामपुर रियासत में शोषण ,उत्पीड़न और निरंकुशता की प्रबलता के कारण यहाँ के स्वतंत्रतावादियों को भागकर बरेली में शरण लेनी पड़ी । अध्यक्ष कर्नल महमूद शाह खाँ मियाँ, सचिव अकबर शाह खाँ, कोषाध्यक्ष हाजी नूर अहमद खाँ और संरक्षक बने मौलवी अजीज अहमद खाँ एडवोकेट ।
सितंबर 1933 में मौलाना अब्दुल वहाब खाँ की अध्यक्षता में अंजुमन खुद्दाम ए वतन का गठन हुआ। मौलाना का जन्म 1891 में रामपुर में हुआ था । आपने नवंबर 1937 से जनवरी 1939 तक जेल यात्रा की । 1945 में अंजुमन ए तामीर ए वतन का गठन करके उसके अध्यक्ष बने । 1946 में जब रामपुर में नेशनल कांफ्रेंस का गठन हुआ तो मौलाना अब्दुल वहाब खाँ उसके अध्यक्ष बने । राधेश्याम वकील उपाध्यक्ष के रूप में तथा देवकीनंदन वकील सचिव के रूप में नेशनल कांफ्रेंस के माध्यम से स्वतंत्रता की दीपशिखा को प्रज्वलित करते रहे ।
यूनुस उर रहमान खाँ का उल्लेख आवश्यक है । 1933 में आपने अंजुमन ए खुद्दामे वतन की स्थापना की तथा 6 महीने की जेल काटी । 1934 में अंजुमन बेरोजगारान का गठन भी आपने ही किया तथा भूखा पार्टी के नाम से इस संगठन ने रामपुर की बेरोजगारी और प्रकारांतर से स्वतंत्रता की आकांक्षाओं को प्रकट किया। 1940 में आप 6 महीने के लिए पुनः जेल गए 1945 में अंजुमन ए तामीर ए वतन तथा नेशनल कॉन्फ्रेंस के 1946 में संस्थापकों में आप रहे ।
सौलत अली खाँ 1893 में रामपुर में जन्मे महत्वपूर्ण जन-नेता रहे । 1937 में आपने जिम्मेदार आईनी हकूमत नाम से आंदोलन चलाया और जनता की स्वतंत्रतावादी आकांक्षाओं को मूर्त रूप दिया ।
रामपुर के स्वतंत्रता आंदोलन को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर कार्य करते हुए प्रोफेसर मुकुट बिहारी लाल( 24 मई 1901 – 16 मार्च 1981) ने जो तेवर प्रदान किए, वह अभूतपूर्व थे । यहॉं स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित शायद ही कोई गतिविधि रही होगी जिसे प्रोफेसर साहब ने प्राणवान न बनाया हो। आपने इंग्लैंड में अपने शोध प्रबंध को अस्वीकृत होना मंजूर किया लेकिन ऐसा संशोधन कदापि नहीं किया जिसे आपकी अंतरात्मा स्वीकार नहीं करती हो। पंडित मदन मोहन मालवीय ने इस क्रांतिकारी नवयुवक को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में बुलाकर प्रोफेसर के पद पर आसीन किया। प्रोफेसर साहब पढ़ाते तो बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में थे, लेकिन आजादी की अलख रामपुर के स्वतंत्रतावादियों के हृदयों में जगाते थे। जब रियासतों के विलीनीकरण का समय निकट आया, तब आपने आचार्य नरेंद्र देव के साथ मिलकर जून 1947 में रियासतों की जनता के संबंध में एक पत्रक प्रकाशित किया। इसमें यह मांग की गई थी कि भारतीय संघ का नागरिक प्रत्येक रियासती निवासी को स्वीकार किया जाए तथा उसे प्रांतीय जनता की तरह ही समान अधिकार प्राप्त हों तथा यह भी कि भारतीय संघ की व्यवस्थापिका सभा के लिए रियासती जनता द्वारा प्रतिनिधि चुने जाऍं।
रामपुर निवासी सुरेश राम भाई ( 10 मार्च 1922 – 6 जनवरी 2002 ) गांधीवादी विचारधारा और विनोबा भावे के अनुयाई के रूप में राष्ट्रीय ख्याति के धनी हुए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आप एम.एससी. गोल्ड मेडलिस्ट थे। आपने क्रमशः 1941 तथा 1942 में एक बार सवा साल के लिए और दूसरी बार छह महीने के लिए स्वतंत्रता हेतु कारावास का वरण किया। वास्तव में आप पढ़ाई के मध्य ही आजादी की लड़ाई लड़ना चाहते थे। गांधी जी को पत्र लिखा। गांधी जी ने कहा कि अभी पढ़ाई पूरी करो, बाद में आंदोलन को देखना।
सतीश चंद्र गुप्त एडवोकेट (9 नवंबर 1922 – 22 मई 2002) को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ने में प्रोफ़ेसर साहब का योगदान था । सतीश चंद्र गुप्त एडवोकेट रामपुर के सपूत थे। । बी.ए. की पढ़ाई के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय गये। “कांग्रेस सोशलिस्ट ग्रुप” से जुड़े। फरवरी 1943 में जब गाँधी जी ने आगा खाँ महल में उपवास किया तब सतीश चंद्र गुप्त तथा रामपुर के उनके एक अन्य साथी नंदन प्रसाद ने भी विश्वविद्यालय के 10 छात्रों के साथ उपवास रखा था। 4 अप्रैल 1943 से 13 जुलाई 1945 तक सतीश चंद्र गुप्त जेल में रहे। आपकी गिरफ्तारी रामपुर से हुई थी। नंदन प्रसाद भी ने भी जेल यात्रा की । जब छूटे तो दोनों का ज्ञान मंदिर पुस्तकालय, रामपुर में अभिनंदन हुआ।
किसान आंदोलन के गर्भ से मई 1946 में मजलिस -ए – इत्तेहाद बनी । सतीश चंद्र गुप्त उसके सचिव बने । बाद में नेशनल कांफ्रेंस के भी सचिव बने। पान दरीबे और किले के सामने पुराने बस अड्डे पर इसकी सभाएँ होती थीं। मौलाना अब्दुल वहाब खाँ, मौलाना अली हस्सन खाँ, फजले हक खाँ,मुशब्बर अली खाँ, सैयद फिरोज शाह मियाँ, रामकुमार बजाज ,शांति शरण , कृष्ण शरण आर्य ,शंभूनाथ साइकिल वाले, रामेश्वर शरण गुप्ता ,देवकीनंदन वकील ,राधेश्याम वकील ,सैफनी के परशुराम पांडेय तथा घाटमपुर के ठाकुर साहब इन सब में सक्रिय थे । पटवाई के किसानों ने आंदोलन किया। अप्रैल 1946 में रियासती सरकार ने गोली चलाई। एक किसान गोली से मारा गया। सतीश चंद्र गुप्त ने भागकर मुरादाबाद में पीटीआई के संवाददाता को खबर बताई, जो पूरे देश में प्रसारित हुई।
शांति शरण ने 1930 में रामपुर में “स्वदेशी-भंडार” खोला जो चार साल चला। आप 1933 में कांग्रेस के विधिवत सदस्य बने ।1936 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के बाद रामपुर में सी.आई.डी. आप की निगरानी करने लगी ।
रामपुर में स्वतंत्रता आंदोलन को समग्रता में वास्तविक आकार देने वाले व्यक्तियों में ओमकार शरण विद्यार्थी (13 जुलाई 1919 – 8 अक्टूबर 1998) का नाम सर्वोपरि है । रामपुर रियासत का पूर्ण विलीनीकरण भारतीय संघ में हो ,इसके लिए स्टेट असेंबली के चुनाव का आपने 1948 में बहिष्कार किया । आपको इनकम टैक्स ऑफिसर का पद प्रदान करने का प्रलोभन दिया गया । रियासती गजट में घोषणा हो गई लेकिन आपने ठुकरा दिया।
राम भरोसे लाल(अक्टूबर 1916 – 26 सितंबर 2005) ने 1948 में रियासती असेंबली के गठन का विरोध किया। चुनावों का बहिष्कार किया और जब कांग्रेस की सहमति से असेंबली के सदस्य बनना स्वीकार किया ,तब ऐतिहासिक रूप से 17 अगस्त 1948 को जब रियासत का विलीनीकरण न होने का प्रस्ताव हामिद मंजिल के दरबार हाल में प्रस्तुत किया गया तब रामभरोसे लाल एकमात्र व्यक्ति थे जिन्होंने सदन के भीतर प्रस्ताव का विरोध किया और स्वतंत्रता आंदोलन को उसके तर्कसंगत निष्कर्ष पर ले जाने का काम किया।
कल्याण कुमार जैन शशि ने अपनी कविताओं से ही देश प्रेम की भावना नहीं जगाई अपितु रामपुर से 1928 में मुरादाबाद जाकर वहाँ के “सत्याग्रह-आश्रम” का संचालन दो-तीन साल किया । वहाँ से हर रोज बीस कार्यकर्ता जेल जाते थे ।
अब्दुल हमीद खाँ का जन्म रामपुर में 14 जुलाई 1918 को हुआ । आप अंजुमन मुहाजिरीन के सक्रिय सदस्य थे। 1933 के आसपास रामपुर में आपने स्वतंत्रता की भावनाओं का समर्थन करते हुए पर्चे बाँटे । स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी करते हुए आप छह महीने जेल में बंद रहे । आपके छोटे भाई अब्दुल हनीफ खाँ भी स्वतंत्रता सेनानी थे । वह 1933 में गिरफ्तार हुए और जेल गए ।
अब्दुल हमीद खाँ के पिता अब्दुल गफ्फार खाँ रामपुर में स्वतंत्रता आंदोलन से संबंध होने के कारण रियासत से निर्वासित कर दिए गए। दस साल तक बरेली में निर्वासित जीवन बिताया। आपकी गतिविधियाँ अंजुमन मुहाजिरीन जिसका कार्यालय बरेली में था, के द्वारा संचालित होती थीं। रामपुर में पोस्टर – पंफलेट आदि बाँटने का कार्य होता था। इसके कोषाध्यक्ष हाजी नूर अहमद खाँ, अध्यक्ष कर्नल सैयद महमूद शाह थे ।
जामा मस्जिद से 1933 में जोरदार भाषण रियासती निरंकुशता के खिलाफ स्वतंत्रतावादी लोग करने लगे । उनकी गिरफ्तारी होती थी। इनमें सैयद फरीद उद्दीन उर्फ अच्छे मियाँ वकील , सैयद फिरोज शाह मियाँ तथा यूनुस – उर – रहमान खान के नाम उल्लेखनीय हैं।
डॉक्टर अब्दुल हकीम खाँ रामपुर के सबसे पुराने डॉक्टर थे । जिला अस्पताल में मुख्य चिकित्सा अधिकारी रहे ।1930 – 31 में आपने सौलत अली खाँ और खादिम अली खाँ के साथ मिलकर रियासती राजतंत्र के खिलाफ आंदोलन चलाया। परिणामतः आपको शहर-बदर अर्थात रामपुर से निर्वासित कर दिया गया। बरेली में रहना पड़ा । सरकारी नौकरी छिन गई। इसका खामियाजा आपके पुत्र अब्दुल रहमान खाँ को 1933 में यह भुगतना पड़ा कि इंडियन पुलिस सर्विस में उनका चयन तो हो गया लेकिन रियासती सरकार ने चरित्र प्रमाण पत्र नहीं दिया और कहा कि आप अंग्रेजों के बफादार साबित नहीं हो पाएँगे।
स्वतंत्रता आंदोलन की भावना वृहद रूप में रामपुर के लोकतांत्रिक स्वाधीनता- प्रिय मानस में विद्यमान थी । देवीदयाल गर्ग ने 1939 – 40 से खादी-व्रत धारण किया । रियासत की सरकार का विरोध किया । हवालात में रहना पड़ा ,बेंत खाए ।
रामपुर में जन्मे प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंहल 1937 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र थे ,मगर खादी पहनते थे । डॉक्टर ईश्वर शरण चिकित्सक की सरकारी नौकरी में रहते हुए भी खादी का बंद गले का कोट पहनने का दुस्साहस करते रहे । स्वामी शरण कपूर रेलवे की सरकारी नौकरी में रहते हुए भी खादी पहनते थे । 1942 में इलाहाबाद में कांग्रेस का चंदा इकट्ठा करके आनंद भवन में जमा कर आते थे।
रियासती सरकार होने के कारण यहाँ कांग्रेस के स्थान पर नेशनल कान्फ्रेंस आदि विभिन्न नामों से स्वतंत्रतावादी गतिविधियां आरंभ हुईं। रामपुर की जनता ने सीधे तौर पर रियासती सरकार और अंग्रेज दोनों का विरोध किया । अनेक बार रामपुर से बाहर जाकर स्वतंत्रता के आंदोलन की मशाल को जलाया । राष्ट्र सभी स्वतंत्रता सेनानियों का ऋणी है और नतमस्तक होकर प्रणाम करता है।
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