Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Oct 2023 · 6 min read

अनुभवों संग पक्षाघात बना वरदान

संस्मरण
(द्वितीय पक्षाघात का एक वर्ष)
अनुभवों संग पक्षाघात बना वरदान
********************************
गत वर्ष ११-१२ अक्टूबर२०२२ की रात जब सोया तब क्या पता था कि सुबह का अनुभव इतना पीड़ादायक होगा। लेकिन ईश्वर की इच्छा के अनुरूप ही सबकुछ चलता है और सुबह जब होकर उठने को हुआ तब मैं एक बार फिर मुझे पक्षाघात का शिकार हो चुका था।
तब से लेकर आज एक वर्ष पूरा होने तक मुझे पीड़ा के अलावा अनेकानेक खट्टे मीठे अनुभवों से दो चार होना पड़ा। यह अलग बात है कि अभी पता नहीं है कि मुझे इस पीड़ा से कब मुक्ति मिलेगी। लेकिन इस पीड़ा के बीच जिस कटु अनुभवों से दो चार होना पड़ा, उसने पक्षाघात से भी ज्यादा पीड़ा दी। ईमानदारी से कहूं तो विश्वास कर पाना खुद ही कठिन हो रहा है, मगर जो खुद महसूस किया, जिसका खुद साक्षी हूं, जो मेरे साथ हुआ है, उसे नजरंदाज कैसे कर सकता हूं और फिर नज़र अंदाज़ कर देने भर से क्या मेरी पीड़ा का अहसास कम हो जाएगा या जो कटु अनुभूतियां हो रही हैं मिट जायेंगी। नहीं, लेकिन जीवन की धरातलीय वर्तमान सच्चाई को और बेहतर ढंग से जानने समझने का यह अवसर मिला, इस बात की खुशी तो है ही, और बड़े बुजुर्गों के उन अनुभवों के मुंह पर तमाचा है जो कहते थे कि विपरीत परिस्थितियों में अपने ही काम आते हैं, लेकिन मेरा जो अनुभव रहा है, चंद अपनों को छोड़कर कोई अपना,जिसे वास्तव में हम अपना कहते हैं, मानते हैं, उसके लिए सबकुछ करने को तत्पर रहे हैं,वहीं अपने आपसे इतना दूरी बना लेते हैं, जैसे उनसे आपका कोई रिश्ता ही नहीं रहा। निश्चित रूप से तीन वर्ष के भीतर दो बार पक्षाघात के दौर ने जीवन में एक बार फिर मुझे इस बात का प्रत्यक्ष अनुभव करा दिया कि अपना अपना नहीं होता पराया पराया नहीं होता। यदि अपना कोई विषम परिस्थितियों में सांत्वना के दो शब्द बोलकर आत्मबल नहीं बढ़ा सकता तो भला उसे अपना या अपना शुभचिंतक अथवा रिश्तेदार कहने का क्या मतलब? वहीं यदि कोई पराया आपका संबल बन जीने का हौसला देने में अपनों से बड़ी भूमिका निभाने को तैयार रहता है तो उसे हम आप पराया कहकर उनका अपमान करें, तो लानत ही है। क्योंकि जब अपने काम नहीं आते तो बहुत से पराए ही आपकी डाल बन जाते हैं।इसका प्रत्यक्ष उदाहरण मैं हूं। जब चंद अपने और कुछ मित्र हमेशा संबल बने रहे। आश्चर्यजनक यह भी है कि कुछेक ऐसे लोग भी होते हैं जिनके लिए आपने कभी कुछ नहीं किया या यूं कहिए कि आपको अवसर ही नहीं मिला।
लेकिन जीवन सकारात्मक सोच से ही आगे बढ़ता है वरना बोझ बन जाता है। मगर हम सबके जीवन में बहुत कुछ ऐसा भी होता है जिसकी कल्पना तक नहीं होती कि ऐसा भी हो सकता है,मगर वोअप्रत्याशित रूप से हो जाता है।
जैसा कि अधिकांश लोग जानते हैं कि प्रथम पक्षाघात(२५ मई”२०२०) के पूर्व मेरी साहित्यिक यात्रा लगभग २० साल लगातार विराम की अवस्था में रही। अब इसे सकारात्मक नजरिए से कहें तो पक्षाघात ने मुझे पीड़ा और दुश्वारियों के मकड़जाल में उलझाने के बाद एक बार फिर मां शारदे की कृपा का पुनः मुझे प्राप्त हुई और अब इसे मेरी सकारात्मक सोच, समय काटने का माध्यम या ऊपर वाले की इच्छा कहें या कुछ और, जो भी आप समझ लें। मेरे जीवन का आधार मेरी लेखनी ही बन गई। जिसका परिणाम यह है कि मान, सम्मान, पहचान तो मिल ही रहा है, देश विदेश के हजारों साहित्यकारों से संपर्क का दायरा रोज ही बढ़ रहा है, इतना ही नहीं आज मेरा यह साहित्यिक परिवार इतना बड़ा हो चुका है, जिसकी कल्पना करना कठिन है और आज मुझे यह कहने में हिचक नहीं है कि यह मेरे किसी बहुत अच्छे कर्मों का प्रतिफल है। यही नहीं आभासी संबंधों के बाद भी इनमें से बहुत से लोगों से मेरे रिश्ते पारिवारिक रिश्तों सरीखे हैं, जिनमें से सैकड़ों लोगों से आमने सामने मुलाकात भी हो चुकी है और आगे और भी लोगों से यह संभव है भी।पर यह भी जानता हूं कि हर किसी से मिलना इस जन्म में संभव है भी नहीं। कुछ के साथ आभासी रिश्ते पुनर्जन्म की कड़ी जैसे लगते हैं। इस आभासी रिश्तों से जहां बहुत कुछ सीखने समझने का अवसर मिलता है, तो रिश्तों का अपनापन, मार्गदर्शन, संरक्षक, स्नेह दुलार आशीर्वाद के साथ लाड़ प्यार और नोक झोंक से साथ अधिकार पाने और जताने का भी अवसर मिल रहा है। रिश्तों का एक बृहद संसार सा बन गया है। जहां अभिभावक/पिता तुल्य भाव भी दिखता है तो मां जैसा लाड़ प्यार भी। बड़े भाई/बहनों की भूमिका में भी बहुत से हैं तो छोटे भाई बहनों का घेरा काफी मजबूत है। कुछेक तो बेटियां बन अपने अधिकार बड़े शाही अंदाज में जताती हैं।
शायद आपको अतिश्योक्ति लगे मगर मुझे महसूस होता है कि मेरे जीवन की यात्रा में इन रिश्तों का बड़ा योगदान है , जो निश्चित ही मुझे निराशा के भंवर में फंसने से पहले दीवार बन मेरा संबल बन जाते हैं, जिसे आत्मिक रुप से मैं हमेशा महसूस ही नहीं करता मानता भी हूं। हर दिन दासियों फोन केवल मेरा हाल चाल लेने के लिए आ ही जाते हैं, लगे हाथ अपने रिश्ते के अनुरूप साहित्य से अलग भी, अपने अधिकारों का भी खुलकर उपयोग करने से नहीं चूकते। इस मामले में छोटे बड़े भाइयों, अभिभावक स्वरूप वरिष्ठों की बात के क्या कहने, बहनें, विशेष कर जो छोटी बहनें/बेटियां तो दादी अम्मा की तरह निर्देशित करती हैं, और समयानुसार भाइयों से अपने लड़ने झगड़ने के जन्म सिद्ध अधिकार का भी प्रयोग करने से नहीं चूकतीं, पर यह भी एक बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है।
विशेष यह कि इस बीच आ. अनिल राही जी (ग्वालियर), प्रदीप मिश्र ‘अजनबी’ (दिल्ली), गिरीश पाण्डेय जी (वाराणसी), डा. आर. के. तिवारी ‘मतंग” सपत्नीक (अयोध्याधाम), कुंदन वर्मा “पूरब” जी व राजीव रंजन मिश्र (गोरखपुर), आर. एन. सिंह “रुद्र संकोची” व ओम प्रकाश श्रीवास्तव (कानपुर), अनुरोध श्रीवास्तव, साइमन फारूकी, सागर गोरखपुरी, नीरज वर्मा ‘प्रिय’, अजीत श्रीवास्तव, स्व. सत्येन्द्र नाथ मतवाला, राम कृष्ण लाल जगमग,श्याम प्रकाश शर्मा, राजेन्द्र सिंह, लवकुश सिंह, विजय श्रीवास्तव (बस्ती) आदि अनेक वरिष्ठ कनिष्ठ साहित्यकार मेरे बस्ती प्रवास स्थल पर आकर मेरा हाल चाल ले चुके हैं।
इस वर्ष के एक मात्र मंचीय आयोजन में उपस्थित होने का अवसर आ. आर. के. तिवारी “मतंग” के अधिकारपूर्ण आग्रह से अयोध्याधाम में २८ मई २०२३ को संपन्न “मतंग के राम” में राजीव रंजन मिश्र जी के सहयोग/लक्ष्मण जैसी भूमिका और दीदी प्रेमलता “रसबिंदू”जी के स्नेह/संरक्षण में मुझे मतंग जी के स्नेह आमंत्रण को मूर्त रूप देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जहां आ. संतोष श्रीवास्तव विद्यार्थी (सागर) ने पिता की तरह हर पल मेरा ध्यान रखने के अलावा हमारे साथ रहे। इतना ही नहीं, सत्तर से अधिक कवियों कवयित्रियों से आमने सामने मिलने का सौभाग्य मिला, जिनसे अब तक आभासी संवाद/रिश्ते पुष्पित होते रहे, तो आ. गिरीश पाण्डेय जी के सौजन्य से आ. भुलक्कड़ बनारसी दादा ने पहली ही मुलाकात में इतना अपनत्व सौंपा कि मैं अनुजवत आज भी उनका स्नेह आशीर्वाद पा रहा हूँ। पद्मश्री डा. विद्या बिंदू सिंह जी का आशीर्वाद, मानस मर्मज्ञ डा अरविंद श्रीवास्तव जी (दतिया), डा. मधुकर राव लारोकर जी (नागपुर), श्रीकांत तैलंग जी(जयपुर), कीसुम सिंह “अविचल” दीदी, अयोध्या प्रसाद पाण्डेय (बस्ती) से पहली मुलाकात व उनका प्रत्यक्ष आशीर्वाद विशेष रहा। दादा प्रदीप मिश्र ‘अजनबी’ जी की भूमिका तो हमेशा से पितृवत ही रही,जो यहां भी रही।अन्य सभी बड़े छोटे भाई बहनों से मिलना और यथोचित स्नेह आशीर्वाद पाना इस वर्ष की मेरी सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि जैसी रही। मंतग जी और उनकी सहधर्मिणी की प्रसन्नता और स्नेह को शब्दों में व्यक्त कर पाना संभव नहीं है। सबका नामोल्लेख करना इसलिए भी संभव नहीं है कि यदि भूलवश किसी का नाम छूट गया तो उसके कोप का शिकार हो सकता हूं। लेकिन आनंद श्रीवास्तव (लखनऊ), रमाकांत त्रिपाठी “रमन” (कानपुर), प्रभात राजपूत “राज गोण्डवी गोण्डा) के अलावा दीपचंद गुप्ता (फतेहपुर) का उल्लेख न करना उनके साथ अन्याय होगा, जिन्होंने छोटे भाई की तरह मुझे सहारा दिया।साथ ही लगभग तैंतीस सालों बाद तारकेश्वर मिश्र “जिज्ञासु” (अंबेडकर नगर) से मुलाकात आनंदित करने वाला रहा, जिसे मैंने साहित्य की ओर आगे बढ़ने का ककहरा अपने विद्यार्थी जीवन (१९८७-९०के मध्य) में अयोध्या में ही अपने और उनके शिक्षणकाल में सिखाया था।
“मतंग के राम” का आयोजन मेरे जीवन के यादगार आयोजन के रूप में निश्चित ही स्मृति शेष रहेगा। क्योंकि इस आयोजन में शामिल होने भर से मेरा आत्मबल अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया है। सरल शब्दों में कहूं तो मेरे उम्र का कुछ वर्ष बढ़ गया लगता है।
अंत में यही कह सकता हूं कि पक्षाघात ने मुझे बहुत पीड़ा दिया और दे रहा है, लेकिन जो मुझे मिला और मिल रहा है, उसके पीछे इसी पक्षाघात की मुख्य भूमिका है और तमाम कठिनाइयों के बाद भी मैं इसे वरदान से कम नहीं मानता।
आप सभी को यथोचित चरणस्पर्श, नमन, प्रणाम के साथ, सभी माताओं, बहनों बेटियों को विशेष रूप से चरण के साथ सभी छोटों को स्नेहाशीष। और सभी के अनवरत स्नेह लाड़ प्यार दुलार आशीर्वाद की आकांक्षा के साथ……..।

सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
1 Like · 312 Views

You may also like these posts

श्रंगार
श्रंगार
Vipin Jain
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
साथ
साथ
Rambali Mishra
वर्ल्डकप-2023 सुर्खियां
वर्ल्डकप-2023 सुर्खियां
गुमनाम 'बाबा'
त’आरूफ़ उसको
त’आरूफ़ उसको
Dr fauzia Naseem shad
हम सब भारतवासी हैं ...
हम सब भारतवासी हैं ...
Sunil Suman
जीवन यात्रा
जीवन यात्रा
विजय कुमार अग्रवाल
सोच समझ कर
सोच समझ कर
पूर्वार्थ
कटे न लम्हा ये बेबसी का ।
कटे न लम्हा ये बेबसी का ।
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
घर :,,,,,,,,
घर :,,,,,,,,
sushil sarna
उस की आँखें ग़ज़ालों सी थीं - संदीप ठाकुर
उस की आँखें ग़ज़ालों सी थीं - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
आत्मविश्वास
आत्मविश्वास
Dipak Kumar "Girja"
F8bet là một trang nhà cái uy tín nhất hiện , giao diện dễ n
F8bet là một trang nhà cái uy tín nhất hiện , giao diện dễ n
f8betcx
*कुछ तो बात है* ( 23 of 25 )
*कुछ तो बात है* ( 23 of 25 )
Kshma Urmila
जन्नत का हरेक रास्ता, तेरा ही पता है
जन्नत का हरेक रास्ता, तेरा ही पता है
Dr. Rashmi Jha
उन्होंने प्रेम को नही जाना,
उन्होंने प्रेम को नही जाना,
विनय कुमार करुणे
क्षणिक तैर पाती थी कागज की नाव
क्षणिक तैर पाती थी कागज की नाव
Dhirendra Singh
हालातों से हारकर दर्द को लब्ज़ो की जुबां दी हैं मैंने।
हालातों से हारकर दर्द को लब्ज़ो की जुबां दी हैं मैंने।
अजहर अली (An Explorer of Life)
भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण यह भी है की यह पर पूरी
भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण यह भी है की यह पर पूरी
Rj Anand Prajapati
"बता "
Dr. Kishan tandon kranti
मुझको तो घर जाना है
मुझको तो घर जाना है
Karuna Goswami
हिन्दी ग़ज़ल
हिन्दी ग़ज़ल " जुस्तजू"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
******* प्रेम और दोस्ती *******
******* प्रेम और दोस्ती *******
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
न जाने ज़िंदगी को क्या गिला है
न जाने ज़िंदगी को क्या गिला है
Shweta Soni
इन हवाओं को महफूज़ रखना, यूं नाराज़ रहती है,
इन हवाओं को महफूज़ रखना, यूं नाराज़ रहती है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
प्रेम क्या है?
प्रेम क्या है?
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
गुरु
गुरु
R D Jangra
2526.पूर्णिका
2526.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
स्वास्थ्य विषयक कुंडलियाँ
स्वास्थ्य विषयक कुंडलियाँ
Ravi Prakash
नीति री बात
नीति री बात
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
Loading...