मुझे किसी से गिला नहीं है।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
दीवाना मौसम हुआ,ख्वाब हुए गुलजार ।
कुम्भा सांगा उदयसिंघ, जलमया भल प्रताप।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
अध्यात्मिक दृष्टिकोण से जीवन का उद्देश्य - रविकेश झा
कुछ तो गम-ए-हिज्र था,कुछ तेरी बेवफाई भी।
समय की प्यारे बात निराली ।
समाज में परिवार की क्या भूमिका है?
जब काँटों में फूल उगा देखा
घृणा के बारे में / मुसाफ़िर बैठा
एक अविरल प्रेम कहानी थी जब अग्नि कुंड में कूद पड़ी मां भवानी थी
मतदान से, हर संकट जायेगा;
*"जहां भी देखूं नजर आते हो तुम"*
*********** एक मुक्तक *************