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16 Mar 2024 · 1 min read

मैं सोचता हूँ आखिर कौन हूॅ॑ मैं

मैं सोचता हूँ कि आखिर कौन हूँ मैं
अपने ही सवालों से क्यों मौन हूँ मैं

बचपन से जवानी खयालों में गुजरी
हर घड़ी देखो बस सवालों मैं गुजरी
डूबा रहा दिल ख्वाबों के साये में
ढूंढता हूँ खुद को खुद मौन हूँ मैं

जवानी थी बहारों और उमंगों भरी
तितली व फूलों जैसी थी रंगो भरी
जवानी गुजरी सपनो के साये में
ढूंढता हूँ खुद को खुद मौन हूँ मैं

गृहस्थी में कमाते रहे फुर्सत कहाॅ॑ है
उलझी हुई पहेली ये जीवन यहाॅ॑ है
रह रहे यहाॅ॑ जद्दोजहद के साये में
ढूंढता हूँ खुद को खुद मौन हूँ मैं

“V9द” तेरी जिंदगी कोई कयास है
भ्रम का है खेल बस झूठी आश है
जी रहे बस सभी मौत के साये में
ढूंढता हूॅ॑ खुद को खुद मौन हूॅ॑ मैं

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