रमेशराज के विरोधरस के दोहे
*सत्तावन की लड़ी लड़ाई ,तुमने लक्ष्मीबाई*(गीतिका)
तूं ऐसे बर्ताव करोगी यें आशा न थी
मां शारदे!
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
"बुलंद इरादों से लिखी जाती है दास्ताँ ,
मीर की ग़ज़ल हूँ मैं, गालिब की हूँ बयार भी ,
मुझको अच्छी लगी जिंदगी
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
अत्यधिक खुशी और अत्यधिक गम दोनो अवस्थाएं इंसान के नींद को भं
बड़े नहीं फिर भी बड़े हैं ।