बृद्ध हुआ मन आज अभी, पर यौवन का मधुमास न भूला।
बृद्ध हुआ मन आज अभी, पर यौवन का मधुमास न भूला।
मौज करे निज धर्म सु-संग कुमार्ग तजें पल खास न भूला।
काल परिस्थिति होत विरूद्ध सुपंथ चला मन आस न भूला।
नूतन यौवन की गति के, बल आज लगा खरमास न भूला।।
संजीव शुक्ल ‘सचिन’