ये काबा ये काशी हरम देखते हैं
जाये तो जाये कहाँ, अपना यह वतन छोड़कर
मत जलाओ तुम दुबारा रक्त की चिंगारिया।
खामोशियों की वफ़ाओं ने मुझे, गहराई में खुद से उतारा है।
*बचकर रहिए ग्रीष्म से, शुरू नौतपा काल (कुंडलिया)*
हर चीज़ मुकम्मल लगती है,तुम साथ मेरे जब होते हो
🙏*गुरु चरणों की धूल*🙏
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
नूर –ऐ- चश्म ( अमर गायक स्व. मुहम्मद रफ़ी साहब के जन्म दिवस पर विशेष )
फुर्सत से आईने में जब तेरा दीदार किया।