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13 Jun 2023 · 1 min read

यह कैसी खामोशी है

माना हमसे दूर बहुत हो,
हो सकता मजबूर बहुत हो।
या कोई मदहोशी है,
यह कैसी खामोशी है॥

कभी कहे जन्मों का बंधन,
एक प्राण है अलग भले तन।
नहीं जरूरत हमें मिलन की,
हम तो चिर आगोशी है।
यह कैसी खामोशी है॥

तेरा – मेरा नाता मन का,
परम पवित्र भाव प्रणयन का।
किंचित स्वार्थ नहीं जीवन का,
फिर भी क्यों हम दोषी है।
यह कैसी खामोशी है॥

– ✍️निरंजन कुमार तिलक ‘अंकुर’
जैतपुर, छतरपुर मध्यप्रदेश

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