बात कोई ऐसी भी कह दो ।

बात कोई ऐसी भी कह दो ।
होठों तक जो आ ना पाए।।
मन, मन से फिर ऐसा उलझे।
मन व्याकुल होकर चिल्लाए।।
कोई अकेला रहे जगत में।
कोई महफिल नित्य सजाए। ।
बुझे दियों को रोशन कर दे।
कोई वो तदवीर बताए।।
सपनों में मंजिल दिखती हो।
‘ सरल’ राह से क्यों घबराए??
✍️कवि दीपक बवेजा सरल