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4 Jun 2023 · 1 min read

किसान,जवान और पहलवान

किसान
तपती दोपहरी में,
आंधी बरसात में
हल गंडासे लिए हाथ में
जो खून जलाता है
पसीना बहाता है
हल चलाता है
अनाज उगाता है
पालता है पेट
देश का वो किसान है।

जवान
स्व जनों से दूर,
बिना दिखे मजबूर
हथेली पर रखकर जान
जागता है रात भर
ललकारता है दुश्मनों को
जल थल गगन
दलदल रेगिस्तान पहाड़ पर
होकर बुलंद होकर मगन
मातृभूमि का ऋण चुकाता है
बलिदान होकर आता है
देश का वो जवान है

पहलवान
जो रगड़ता है खुद को
दंगल की मिट्टी पर,
छकाता है विरोधियों को
दांव पेंच साध कर।
मान बढाता है देश का,
पटकता है कभी धोबी पछाड़
विदेशों में भी देता है झंडे गाड़

जीतता है तमगा कांसा चांदी सोना।
मगर हालातों से हार कर
क्यों नसीबों में है उन्हें रोना
और जंतर-मंतर पर सोना ।

क्या ये सचमुच बलवान हैं?
हां यही तो हमारे पहलवान हैं।

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