Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Oct 2024 · 2 min read

संस्मरण

संस्मरण
दशहरे पर नए बहीखातों के पूजन की परंपरा
➖➖➖➖➖➖➖➖
हमारे परिवार में दशहरे का हमेशा से विशेष महत्व रहा है। इस दिन नए बहीखातों का पूजन होता था। पूजन के अंतर्गत बहीखातों के प्रथम पृष्ठ पर रोली से स्वास्तिक बनाया जाता था। बहीखातों से अभिप्राय लाल कपड़े की जिल्द वाले ‘डबल फोल्ड’ के बहीखातों से है। उन दिनों दुकान पर चॉंदनी बिछाकर सब लोग बैठते थे। ग्राहक भी और दुकानदार भी। डबल फोल्ड का बहीखाता जब खोला जाता था, तो काफी जगह घेरता था। जमीन पर बैठकर ही उस पर काम करने में सुविधा होती थी।

पूजन के बाद नए बहीखातों पर दुकान का काम शुरू हो जाता था। पुराने बहीखातों को नए बहीखातों पर उतारा जाता था।

सारा काम मुंडी लिपि में होता था। जब 1984 में मुनीम जी (पंडित प्रकाश चंद्र जी) जिनको हम आदर पूर्वक ‘पंडित जी’ कहते थे, का देहांत हो गया; तब पिताजी ने मुंडी लिपि के स्थान पर बहीखाते के काम में देवनागरी लिपि अपना ली। पहले साल का बहीखाता उन्होंने उतारा। इसमें कितना परिश्रम लगा होगा, इसका अनुमान मुझे तब लगा; जब अगले साल मैंने बहीखाता उतारा। मुझे पंद्रह दिन लगे। पिताजी का कहना था कि पंडित जी दशहरे से शुरू करके लगभग गंगा स्नान से कुछ पहले तक बहीखाता पूरा कर पाते थे।

जब 1985-86 के आसपास पूरे देश में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च लागू हो गया, तब कुछ वर्ष तक तो बहीखातों के पूजन की औपचारिकता चलती रही, लेकिन फिर उसके बाद बड़े साइज के कागज पर दिनांक सहित सोने-चॉंदी आदि के भाव लिखकर पुरानी परंपरा का निर्वहन होता रहा। यह अब भी चल रहा है।

दशहरे पर बहीखाते पूजने के बाद उनको लेकर हम लोग घर के दरवाजे के बाहर जाते थे तथा एक-दो कदम चलकर फिर वापस लौट आते थे। घर से बाहर बहीखाता लेकर जाने तथा लौटकर आने के पीछे मेरे ख्याल से यह विचार रहा होगा कि पुराने जमाने में बरसात के बाद मौसम अच्छा होने पर व्यापारी लोग लंबी यात्रा पर दशहरे के दिन से प्रस्थान करते रहे होंगे। फिर जब दशहरे पर व्यापार के लिए घर से बाहर लंबी यात्रा पर जाना बंद हो गया होगा, तब परंपरा को प्रतीक रूप से निभाने का कार्य चला होगा।

दशहरे पर दुकान की तराजू और बाटों पर भी कलावा बॉंधा जाता था। कलम पर भी कलावा बॉंधा जाता था। लेखक होने के नाते कलम पर कलावा बॉंधना मुझे दशहरे पर विशेष प्रिय लगता है।

189 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

बावरा मन
बावरा मन
RAMESH Kumar
अर्धांगिनी
अर्धांगिनी
Roopali Sharma
प्रश्न - दीपक नीलपदम्
प्रश्न - दीपक नीलपदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
तुम मुझे गुनगुनाओ तो सही, अपना कह कर प्यार जताओ तो सही साथ र
तुम मुझे गुनगुनाओ तो सही, अपना कह कर प्यार जताओ तो सही साथ र
पूर्वार्थ देव
*रोग-बुढ़ापा-चूहे तन को खाते(मुक्तक)*
*रोग-बुढ़ापा-चूहे तन को खाते(मुक्तक)*
Ravi Prakash
हिंदी साहित्य की नई विधा : सजल
हिंदी साहित्य की नई विधा : सजल
Sushila joshi
पीकर चलना  नारियल , करना तू प्रयास ।
पीकर चलना नारियल , करना तू प्रयास ।
Neelofar Khan
नये साल के नये हिसाब
नये साल के नये हिसाब
Preeti Sharma Aseem
" महत्ता "
Dr. Kishan tandon kranti
ग़ज़ल
ग़ज़ल
SURYA PRAKASH SHARMA
प्रेम की सबसे सुंदर अभिव्यक्ति
प्रेम की सबसे सुंदर अभिव्यक्ति
पूर्वार्थ
यूँ तैश में जो फूल तोड़ के गया है दूर तू
यूँ तैश में जो फूल तोड़ के गया है दूर तू
Meenakshi Masoom
आप नौसेखिए ही रहेंगे
आप नौसेखिए ही रहेंगे
Lakhan Yadav
ये कटेगा
ये कटेगा
शेखर सिंह
चंद्रयान-३
चंद्रयान-३
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
कागज
कागज
SATPAL CHAUHAN
शेर-
शेर-
*प्रणय प्रभात*
आज पासून झाली सुरुवात
आज पासून झाली सुरुवात
Shinde Poonam
प्रेम पगडंडी कंटीली फिर भी जीवन कलरव है।
प्रेम पगडंडी कंटीली फिर भी जीवन कलरव है।
Neelam Sharma
सफ़र जो खुद से मिला दे।
सफ़र जो खुद से मिला दे।
Rekha khichi
बंध
बंध
Abhishek Soni
यूं तमाम शब तेरी ज़वानी की मदहोशी में गुजार दी,
यूं तमाम शब तेरी ज़वानी की मदहोशी में गुजार दी,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
शुभ प्रभात
शुभ प्रभात
Rambali Mishra
क्या हुआ गर तू है अकेला इस जहां में
क्या हुआ गर तू है अकेला इस जहां में
gurudeenverma198
सारे शारीरिक सुख को त्याग कर मन को एकाग्र कर जो अपने लक्ष्य
सारे शारीरिक सुख को त्याग कर मन को एकाग्र कर जो अपने लक्ष्य
Rj Anand Prajapati
आज मौसम में एक
आज मौसम में एक
अमित कुमार
बुन्देली दोहा प्रतियोगिता -205 (अकतां) के श्रेष्ठ दोहे
बुन्देली दोहा प्रतियोगिता -205 (अकतां) के श्रेष्ठ दोहे
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
स्वीकार करना है
स्वीकार करना है
surenderpal vaidya
"ज्यादा हो गया"
ओसमणी साहू 'ओश'
हर शख्स तन्हा
हर शख्स तन्हा
Surinder blackpen
Loading...