उस वक़्त मैं
उस वक़्त मैं,
हो गया था जड़त्व उसके शांत होते ही,
और निकला नहीं मुँह से,
हमदर्दी का एक भी शब्द,
क्यों ?
उस वक़्त मैं,
हाँ,मैं ईश्वर को नहीं मानता,
फिर भी मेरे कदम पीछे हट गए,
किसी भय या आशंका से,
क्यों ?
उस वक़्त मैं,
समझा था यही,
अपनी सभ्यता और संस्कृति,
जिसको जन्म दिया था कभी,
अपने तपो-श्रम से मनीषियों ने,
महापुरुषों और तपस्वियों ने,
और मैं हो गया पराजित,
क्यों ?
उड़ वक़्त मैं,
करता था ख्याल यह भी,
देकर सजा निर्दोष को,
नहीं करना चाहिए अपनी प्यास शांत,
और भूल गया अंतर – असमानता,
लगा लिया गले सभी को मैंने,
क्यों ?
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)