सोशल मीडिया पर एक दिन (हास्य-व्यंग्य)
सोशल मीडिया पर एक दिन (हास्य-व्यंग्य)
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व्हाट्सएप समूह खोलते ही दिमाग भन्ना गया । पैंतीस फोटो पड़ी थीं। हमेशा की तरह गुप्ता का काम था । अभी गोवा घूम कर आया है । जितना कबाड़ उसके फोन में भरा होगा ,सब ग्रुप में डाल दिया । अब सीधा हमारी गैलरी में चला ग या होगा और वहाँ से मुझे आधा घंटा लगा कर डिलीट करना पड़ेगा ।
ग्रुप में कोई भी तो पसंद नहीं करता, इस तरह से फोटो डालने को । …लेकिन क्या किया जा सकता है ! मैंने गहरी सांस ली और फोटो देखे बगैर आगे बढ़ने की कोशिश की । लेकिन मुझे मालूम था फोटो गैलरी में जा चुके हैं ,इसलिए खोल कर देखने लगा। फिर मन उकता गया । बंद कर दिया ।
दूसरे समूह में गया। वहां भी यही हाल था। एक सज्जन ने कविता लिखी थी । ग्रुप में भेजी थी । उनकी वाहवाही हो रही थी ।दस – बारह मैसेज इसी बात के पड़े हुए थे। फिर उसके बाद उनके धन्यवाद । वह भी एक-एक व्यक्ति को अलग-अलग दिए गए थे। यानी तीस – पैतीस मैसेज एक कविता के चक्कर में इस समूह पर भरे हैं।
मन में बहुत बार आता है ,सारे व्हाट्सएप समूहों से अलग हो जाऊं और चैन से जिंदगी गुजारूँ। लेकिन यह भी तो नहीं हो पाता। समाज से कटकर आदमी कैसे रह सकता है ? ..और इस समय तो सोशल मीडिया ही समाज है ।
कौन किसको नमस्ते कर रहा है ? अब आप हमारे पड़ोसी को ही ले लीजिए। उसका कल जन्मदिन था । सुबह-सुबह पता चला तो सोशल मीडिया पर उसे हैप्पी बर्थडे लिख दिया । तुरंत उसका जवाब आया- “थैंक्स”। फिर बाद में दिन में कई बार उसकी नजर हम पर और हमारी नजर उस पर पड़ी लेकिन हमेशा की तरह न नमस्ते न कोई दुआ – सलाम । उसका मुंह अपनी जगह टेढ़ा था और हम मुंह सीधा करके भी क्या करते ?
सब अपने आप में मशगूल हैं । सोशल मीडिया भी कई बार सोचता हूं ,काहे का सोशल है ? बस एक मायावी दुनिया रची हुई है , जिसमें हम घूमते रहते हैं । उसके बाहर निकलकर आओ तो फिर कुछ नहीं ।
अभी-अभी एक और व्हाट्सएप समूह पर एक सज्जन की एनिवर्सरी की खबर आई है। सोचता हूं ,इसे भी हैप्पी एनिवर्सरी लिखकर निपटाया जाए । फिर पता नहीं याद रहे न रहे ।
लाइक का अपना महत्व है । कुछ दिन पहले की ही तो बात है । भाई साहब उसी चक्कर में अवसाद के शिकार हो गए । उन्होंने कहीं से घूम कर आने के बाद अपनी सुंदर – सी फोटो ग्रुप में डाली और किसी ने लाइक नहीं किया । फिर फेसबुक पर डाली । वहां भी मुश्किल से तीन या चार लाइक आए। बस भाई साहब की तो तबीयत खराब होने लगी । फिर उनके घर वालों ने जगह-जगह फोन मिला कर लोगों से अनुरोध किया कि भाई साहब की फोटो को लाइक करने का कष्ट करें । इस तरह भारी भागदौड़ करने के बाद कुल मिलाकर छत्तीस लाइक आए । फिर वह लाइक भाई साहब को दिखाए गए । जब भाई साहब ने देख लिया कि उनकी पोस्ट पर छत्तीस लाइक आ चुके हैं, तब उनकी तबीयत थोड़ी सही हुई । वरना उन्हें तो लग रहा था कि संसार में हमारे जीने और मरने से कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है।
कुछ दिन पहले की एक और घटना भी सुन लीजिए । एक सज्जन की विवाह की वर्षगॉंठ थी । उन्होंने एक समूह में डाली। लेकिन बदकिस्मती से सिर्फ दो लोगों ने उन्हें बधाई दी। जिन लोगों ने उन्हें बधाई नहीं दी और जिन से उनको उम्मीद थी कि बधाई जरूर मिलेगी , उनसे उनके संबंध हमेशा के लिए खराब हो गए। उन्होंने सार्वजनिक रूप से घोषणा कर दी कि जब व्हाट्सएप समूह पर हमारी शादी की वर्षगॉंठ पर बधाई तक आप नहीं दे सकते तो फिर रिश्तेदारी किस बात की ?
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451