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5 Feb 2023 · 1 min read

दिल कुछ आहत् है

रातें हैं सर्द पर धूप में गर्माहट है,
आया है ऋतुराज, चहुंँओर सजावट है,
क्या बसंती मौसम है, हवाओं में सनसनाहट है,
पर होता नहीं अहसास क्योंकि दिल कुछ आहत् है।
लीचियांँ हैं मंजरित, आम्रों में बौरें हैं,
उड़ती हैं तितलियांँ, मंँडराते भवरें हैं,
फूलों से हैं बाग लदे, परागों में मदमाहट है,
पर होता नहीं अहसास क्योंकि दिल कुछ आहत् है।
आजादी के वर्षों बीते, आई-गई कई सरकार,
मिड्ल क्लास की वही दशा है; बेबस और लाचार,
छूटा हाथ, खिला कमल, दिल्ली में गर्माहट है,
पर होता नहीं अहसास क्योंकि दिल कुछ आहत् है।
खाद-बीज महंँगे हो गए, अनाज बिकते कौड़ी के दाम,
गरीब जनता की गाढ़ी कमाई, आती है पूंँजीपतियों के काम,
सफाई योजना, जन-धन योजना, योजना आयोग में बदलाहट है,
पर होता नहीं अहसास क्योंकि दिल कुछ आहत् है।
क्या होगा बापू का सपना, राम-रहीम में बंँटा समाज,
ऊंँच-नीच का भेद बड़ा है, व्यवस्था जा रही प्राइवेट हाथ,
क्या हो रहा, ऐ सरकार! दिल में बड़ी घबड़ाहट है,
रहा नहीं विश्वास किसी पर क्योंकि दिल कुछ आहत् है।
(02.01.2015 को रचित)

मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण ‘श्रीपद्’
बेगूसराय (बिहार)

Language: Hindi
5 Likes · 6 Comments · 447 Views
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