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10 Nov 2022 · 1 min read

खुलकर बोलूंगा

जेहन का हर बोझ त्यागकर
मन का हर इक संकोच त्यागकर
भेद मैं मन के खोलूंगा
आज मैं खुलकर बोलूंगा

खुद के सम्मुख खुद को करके
निज हाथ आशीष माथ पर धरके
गिरह वचन के खोलूंगा
आज मैं खुलकर बोलूंगा

उम्मीदों ने तन्हा कर डाला
पूछो न के क्या – क्या कर डाला
मैं भी उम्मीदों को अपने,
वैसे ही तन्हा छोडूंगा
आज मैं खुलकर बोलूंगा

मौन अधर था, सब वक्ता थे
अपनी बातों के अधिवक्ता थे
सभी मौन हो जाएंगे!
आज मौन को तोडूंगा
आज मैं खुलकर बोलूंगा

गई भाड़ में दुनियादारी
मैं भी कर ली है तैयारी
एक – एक करके सबको
उनके ही माफिक छोडूंगा
आज मैं खुलकर बोलूंगा
-सिद्धार्थ गोरखपुरी

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