लगे बरसों तुम्हें आतंक की लंका बनाने में।
लगे बरसों तुम्हें आतंक की लंका बनाने में।
धर्म के नाम पर इंसानिया का खून बहाने में।।
सहा हमने बहुत पर आंच जब सिंदूर पर आई।
हमें पल भर लगे आतंक की लंका जलाने में।।
“कश्यप”