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10 Sep 2022 · 1 min read

अश्कों को छुपा रहे हो।

झूठी हंसी हंस कर अश्कों को छुपा रहे हो।
पूछने पर कुछ आंख में चला गया है बता रहे हो।।1।।

मालूम है तुमको नफ़रत के बीज बो रहे हो।
सभी को पता है तुम मदरसों में क्या पढ़ा रहे हो।।2।।

दीन के नाम पर मासूमों को बरगला रहे हो।
देकर जन्नत का वास्ता तुम इनको बहका रहे हो।।3।।

तुम ना समझ पाओगे ज़िन्दगी के मसाईल।
तुम जो इसको आलीशान महलों में बिता रहे हो।।4।।

सच्चाई के बनते हो तुम बड़े अलम्बरदार।
अपने झूठ से सारे ही शहर में दंगे करवा रहे हो।।5।।

गुरबत इंसान की तुरबत के जैसी होती है।
अपनी जरूरतों को तुम हमसे क्यों छुपा रहे हो।।6।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ

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