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28 Apr 2022 · 1 min read

पापा का संदेश

शीर्षक:पापा का संदेश
गाँव से निकल न जाने कब पीढ़ी शहर आ गए
अपने तो संस्कार गांव के घर ही भूल कर आ गए
आँगन में मिट्टी के चूल्हे पर रोटी का बनना छोड़ आ गए
न जाने हम कब परदेसी हो गए
शहर में पले हमारे ही बच्चे हमारे घर से दूर हो गए
गांव का घर सुना कर हम शहर को रोशन करने आ गए
हमारा ही घर नही अड़ोसी-पड़ोसी भी निकल गए
न जाने हम कब अनजाने हो गए
ताऊ,चाचा के बच्चों संग खेले अब उनको भूल गए
पैसो की मारामारी में रिश्ते ही कही छूट गए
न चाहते हुए भी हम रक दूसरे से दूर हो गए
गाँव के घर न जाने कब वीरान हो गए
पड़ोस की चाची के भी हम लाडले हुआ करते थे
आज शहर में पड़ोसी भी अनजाने हो गए
पता ही नही चला पड़ोस में कौन आकर बस गए
देखते ही देखते हम अकेलेपन से घिर गए
शादी भी किसी रिश्तेदार द्वारा तय हुआ करती थी
आज हम समाचारपत्र के अधीन हुए
बड़े शहर मकान छोटे हो गए
न जाने हम कब परदेशी हो गए
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद

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