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13 Apr 2022 · 1 min read

लत...

लत …

लग चुकी हैं तुम्हारी मुझे,
और मेरी तुम्हें
नहीं समझे ना,
हाँ .. शायद ये समझने में मुझे भी जरा वक्त लगा,
अजीब सा नशा हैं,
जो दूर तो हैं हम एक – दुसरें से,
फिर भी एक – दुसरें में बहके हुए हैं..

तुम थे,
तो वहीं था, लड़ना – झगड़ना,
तुम ही
कभी रूँठ जाते तो कभी रूँठा दिया करते थे,
हर बातों में सताया करते थे,
छेड़ा करते थे,
कभी – कभी तो रूँलाया भी करते थे,
फिर अपनी ही गलती पर माफी माँगकर
रोती आँखों को हँसाया भी करते थे..

बहुत कुछ बदल दिया था कुछ ही पलों में,
पर ना तुम समझे, ना मैं,
एक दुसरें से दूर रहने की जिद्द लेकर ही,
एक दुसरें के एहसासों में जिने लगे थे,
ना तुम मेरे करीब रहना चाहते थे, ना मैं,
फिर भी एक दुसरे की परवाह किया करते थे..

मुझे तोड़ने और खोने का ड़र,
तुम्हें मुझसे दूर तो ले गया,
लेकिन मेरी साँसों के एहसास से,
तुम खुद को दूर ना कर सके,
छुप -छुप कर,
खामोश ही रह कर,
मेरी खुशियों की दुआ माँगा करते रहे,
परवाह भी हैं तुम्हें … और मुहब्बत भी…

सुनो,
तुम ही मेरी वो लत हो,
जो मुझे हर लत से ज्यादा प्यारे हो गए हो,
समझ सकों तो समझ जाओ,
मुहब्बत हो,
मेरे वक्त गुजारने का कोई पल नहीं,
जो लौट कर दुबारा आ ना सको……
#ks

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