**जिंदगी बोझ समझ ढोते रहे**

**जिंदगी बोझ समझ ढोते रहे**
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जिंदगी बोझ समझ ढोते रहे,
रात – दिन नीर नयन रोते रहे।
गम कभी पास नहीं आने दिया,
बेच कर चैन सदा सोते रहे।
ख्वाब हर रोज नये देखे यहाँ,
मन कभी होश नहीं खोते रहे।
फासले कम न हुए बढ़ते रहे,
ताउम्र दाग और निशाँ धोते रहे।
पीर पर्वत सी बड़ी मनसीरत हुई,
बीज बंजर हुई धरा बोते रहे।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)