…..बेबस नारी….
मैं नारी हूं इस लिए मुझे क्यों?
कुछ करने का अधिकार नही ।
कुछ कहने का अधिकार नही,
कुछ सुनने का भी अधिकार नही।
बात बात पर सब हमको,
तानों से आहत करते हैं।
शब्दों के खंजर से क्यों ,
सब हमको ही जख्मी करते हैं
समझौता अपने स्वाभिमान संग,
क्यों हमको ही करना पड़ता है।
धिक्कार है ऐसे जीवन का ,
बिन सम्मान के जीना पड़ता है
बचपन से लेकर आज तलक ,
बस यहीं तो सुनते आए हैं।
नारी का काम तो सहना है,
सबकी हम सहते आए हैं,
जो मिले उसी में खुश रहो ,
बस यहीं हमें सिखलाया गया।
नारी हूं मैं बस इसलिए ,
बोझ बना दर्शाया गया।
कहने को तो सब यहां अपने हैं
मायका भी है ससुराल भी है।
लेकिन सब रिश्ते तबतक हैं
जबतक सबकी हां में हां हैं।
मानों अगर मेरी बातें ,
कुछ अपने लिए कह कर देखो।
सबके साथ साथ जरा,
अपने लिए कुछ कर के देखो।
फिर बाहर वालों से पहले,
घर वालों को सामने पाओगे।
क्योंकि औरत का आगे बढ़ना ,
ये लोग देख नही पाते हैं।
रुबी चेतन शुक्ला
अलीगंज
लखनऊ