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1 Apr 2022 · 1 min read

जिंदगी समंदर सी बन गई मेरी

जिंदगी समंदर सी बन गई मेरी
चाहकर भी मैं निकल पाता नहीं
या कोई अनबुझ पहेली हो जैसे
सोचता हूं मगर समझ पाता नहीं
रास्ते इसमें हैं कंटीले बिहड़ जैसे
उलझा हुआ हूं निकल पाता नहीं
पर्वतों से शिखर ढलान तिखी है
कोशिशों से भी मैं चढ़ पाता नहीं
लोग सजाते हैं महफ़िलें रात भर
मेरा तन्हां दिल बहल पाता नहीं
सुना है जिंदगी बेवफा है’विनोद’
प्रेम कैसा फिर समझ पाता नहीं

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