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22 Mar 2022 · 1 min read

जल को व्यर्थ बहायें क्यों!

आओ हाँथ बढ़ा कर हम सब,
जल को एकत्रित कर लें।
खेत और खलिहान की भावी
पीढ़ी को चित्रित कर लें।

मिलें भरे घट, जल-असुवन से,
सलिला कहीं मिले निष्ठुर।
खत्म हुआ दिखता पानी है,
फसल कुटंब सब चिंतातुर।

अंजुलि-अंजुलि सिमटा लें हम,
जल को व्यर्थ बहायें क्यों!
मुँह तकता भविष्य अपना है,
फिर संघर्ष बढ़ायें क्यों।

पानी जीवन-संबंधों का,
रहता है अनमोल सदा।
शुष्क कंठ या तरल धरा बिन,
विश्व भी हो बिन-बोल सदा।

अद्भुत संचय जल का करके,
अपना कल सज्जित कर लें
आओ पुराने ढंग बदलें औ
सपने नव-निर्मित कर लें।

स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ

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