आहट को पहचान...
आहट को पहचान…
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आहट चुपके से दस्तक दे रही,
फिर भी षड़यंत्र से अंजान हो..
सीखा नहीं कभी इतिहास से,
तुम मुफलिसी के शिकार हो..
सत्ता स्वार्थ पाने की खातिर,
वो आतंक जाल बिछाता रहा..
तेरी जमीं तेरे अरमानों पर वो
कलंक का कालिख लगाता रहा..
भारत के टुकड़े करने के वो बीज बोते
फिर भी तुम फंसते उनके इन्द्रजाल में,
नेताओं के भेष में भेड़िए छुपे होते यहाँ ,
फिर भी फंसते भ्रमजाल में,किस ख्याल में
घुसपैठियों को वोट के लिए जो बसाया है
भारतमाता के सीने में वो खंजर चुभाया है,
तुम रोजगार की खोज में भटकते दर दर
घुसपैठियों ने रोजगार कौशल हथियाया है..
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १९ /०२/ २०२२
फाल्गुन , कृष्णपक्ष , तृतीया ,शनिवार
विक्रम संवत २०७८
मोबाइल न. – 8757227201