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28 Nov 2021 · 2 min read

पेड़ की गुहार इंसान से…

मत मारो मुझे ,

मत काटो मुझे ,

बहुत दर्द होता है .

कुछ समझ नहीं पाता हूँ,

और ना ही समझा पाता हूँ,

ज़िंदगी हूँ मैं तुम्हारी और तुम मेरी ,

ना ही तुम्हें एहसास करवा पाता हूँ.

भला मेरी ह्त्या से तुम्हें क्या हासिल होगा ?

मैं नहीं रहूंगा तो तुम्हारा जीवन नष्ट होगा .

आज उजाड़ दोगे यदि मुझे और मेरा परिवार को ,

तो तुम्हारी नस्लों का भविष्य क्या होगा ?

सोचो तो सही तुम कर क्या रहे हो ?

मेरे किये गए निस्वार्थ सेवा और उपकारों के ,

बदले तुम मुझे मौत दे रहे हो .

मैं तुम्हें, फल- फूल , ओषिधि देता हूँ,

साँस लेने को साफ़ हवा देता हूँ ,

तुम अपने जीवन- संघर्ष से जब थक जाते हो ,

तो मैं तुम्हें अपनी छत्र- छाया में लेता हूँ.

तुम्हें सुख और आराम देने के लिए मैं

कड़ी धुप , बरखा और आंधिओं को सहता हूँ.

इतने कष्ट सहने के बावजूद भी अरे इंसान !

मैं तुम्हारे पत्थर की चोट भी सहता हूँ.

मैं तुम्हारी तरह इंसान ना सही ,

मगर दर्द तो मुझको भी होता है.

अपनी सन्तानो से प्राप्त चोट और उपेक्षा से ,

दुःख- संताप मुझे भी होता है.

हाँ ! मैं भी सजीव हूँ , निर्जीव नहीं.

अरमान है मेरे दिल में भी बहुत,

अफ़सोस !तुमने जिन्हें पहचाना नहीं.

निस्वार्थ सेवा ,प्यार ,सुरक्षा तुम्हें ,

अब तक देता आया हूँ .अब भी दूंगा,

मगर बदले में तुमसे कुछ माँगा भी नहीं.

उफ़ ! मेरी सहनशक्ति की कोई सीमा नहीं ,

तुमसे मिलते रहते यूँ तो कितने दर्द ,

मगर यह दर्द ,उस गम से कम नहीं ,

हूँ तो मैं हक़दार तुम्हारे प्यार ,सेवा और पनाह का ,

मगर मेरी तक़दीर में यह तमाम सुख नहीं.

चली ! कोई बात नहीं ! तुम मत दो अपना प्यार ,

मगर मुझे जीवित तो रहने दो .

इस पृथ्वी पर मुझे भी रहने का हक़ है,

मुझे इस पृथ्वी के छोटे से सही मगर रहने दो .

यह दर्द भरी गुहार है मेरी ,

यह एक प्रार्थना है मेरी ,

ऐ नादान इंसान !

मुझे मत मारो ,

मुझे मत काटो ,

मुझे बहुत दर्द होता है.

Language: Hindi
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