हम भी कहीं न कहीं यूं तन्हा मिले तुझे
गुस्सा सातवें आसमान पर था
चीखें अपने मौन की
Dr. Chandresh Kumar Chhatlani (डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी)
बेशक मैं उसका और मेरा वो कर्जदार था
*जलने वाले जल रहे, जल-भुनकर हैं राख (कुंडलिया)*
दिन आज आखिरी है, खत्म होते साल में
"ज्ञ " से ज्ञानी हम बन जाते हैं
बहुमूल्य जीवन और युवा पीढ़ी