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22 Nov 2021 · 1 min read

अमात्य अमन के दीप समान

कविता- अमात्य अमन के दीप समान

आमात्य अमन के दीप समान
हर विरह मन के शीत समान
शांति का ये परिकाष्ठा हैं
मानव वतन से इन्हें निष्ठा हैं
गैर बेगैर ये जानता नहीं
किसी को बैरी मानता नहीं
सरल भाव ये पुष्प के जैसे
हृदय कोमल छोड़े कैसे
इन पर सबका रंग हैं चढ़ता
ये सदा प्रसन्नचित ही रहता
बने कर्ता सत्य कर्म का सदा
नैतिकता इन पर रहता फिदा
मान अपमान का ना गांठ बांधता
परोपकार में लगभग उर्म बिताता
क्षत्रिय का पदभार खुद निभाएं
ज्ञान श्रेष्ठ मेंं वो एक कहाएं
जाती का इन्हें भुषण कहतें
अमन जन्मे नीत प्रयास यें करते
इन पर देव प्राकृतिक का भार
मरता खाकर स्नेह का मार
अपने लिए ये कभी न जीता
हर धर्म के बंधू और मीता
कण धन मुद्रा में न रुचि रखते
भूजा को अपने जग नाथ ये कहते
जीवन मौका इस बात को हरपल मानता
परोपकार से ही आयू का सफर ये करता।
सभ्यता, सरलता, संस्कृति को फरमान चढ़ाते
इसलिए कविराज हैं अमात्य कहलाते।
इसलिए कविराज हैं अमात्य कहलाते

रचनाकार – रौशन राय अमात्य
तारीख- 06 – 09 – 2021
दुरभाष अं – 8591855531/9515651283

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