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22 Nov 2021 · 2 min read

मैं भी एक दिन बच्चा था,सच में वो दिन अच्छा था

कविता – मैं भी एक दिन बच्चा था सच में वो दिन अच्छा था

मैं भी एक दिन बच्चा था सच में वो दिन अच्छा था
मिलता था जो प्यार किसी से वो प्यार एक दम सच्चा था
वो दिन बचपन के, कितना खूबसूरत था
हर ग़म से दुर,सबके लिए मैं मुरत था
जिसको मन हुआ वो गोदी, उठा लेते थे
मेरे रोने से,सारा घर हील जाते थे
मुझे चुप करने की खातिर,मां लोड़ियां सुनाती थी
कहके राजा बेटा,सौ सपनें सजाती थीं
बाबू जी जब,काम पर से घर आते थे
तुतला कर पहले वो, मुझे से बातें करते थे
दादा जी जब मेरा घोड़ा बनते थे
उनके आगे सब कुछ,फिका लगते थे
और दादी मुझे कुल का भुषन कहती।
मैं रोता और मां डांट खाती
उंगली पकड़कर सब चलना सिखाते थे
गिरने पर वो फुंकों से,चोट को भगाते थे
स्नेह का वो भरा खजाना खाली कभी न होता था
मोहल्ले वाले भी हमें बड़े प्यार से बुलाता था
बड़ी अनोखी वो सफ़र रहा अभी भी सब याद है
सबको मिलें ये प्यार भरा पल ये मेरा फरियाद हैं
अपने और पराए में भेंद समझ में नहीं आता था
सच पुछो तों वो दिन बड़ा सुहावन सा लगता था
परिवर्तन का ये चक्का हमेशा घुमाता रहता है
बच्चा जवान और बुढ़ा होके सब मर जाता है
प्राकृतिक मोड़ ने जीवन में सब कुछ दिखा दिया
बुढ़ा होके मैं मरा और बच्चा बनकर जन्म लिया
मैं भी एक दिन बच्चा था सच में वो दिन अच्छा था
मिलता था जो प्यार किसी से वो प्यार एक दम सच्चा था

रचनाकार – रौशन राय
तारिख – 24 – 08 – 2021
दुरभाष नं- 9515651283 /7859042461

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