ये कुर्सी के लिए हर काम उल्टा कर रही है
ये कुर्सी के लिए हर काम उल्टा कर रही है
सियासत आज अपनों को पराया कर रही है
धरम के नाम पर हमको लड़ाया था इसी ने
सियासत फिर उन्हीं ज़ख़्मों को ताज़ा कर रही है
कभी मज़हब, कभी ज़ातों की चिंगारी जलाकर
ये दुनिया को फ़क़त मायूसो तन्हा कर रही है
हमारी बेबसी पर हँस रही है ख़ुद सियासत
जो हम सबको बचाने का तमाशा कर रही है
ख़रीदे जा चुके हैं जिस्म, धड़कन, ज़हन, जज़्बात
बची जो रूह है, उसका भी सौदा कर रही है
कभी इज़्ज़त, कभी दौलत, कभी शोहरत के झाँसे
तेरी दुनिया हमारे साथ क्या-क्या कर रही है