आज़ाद गज़ल
अनर्गल नहीं सोंच समझकर लिखें
भले कम ही लिखें पर बेहतर लिखें ।
खो न जाएँ यूँ खोखली खुबसूरती में
खलुस नहीं तो दिल को पत्थर लिखें।
आलिशान बँगले में ऐशो-आराम लिए
चकाचौंध महलों में रहते खंडहर लिखें।
देख कर धारदार लोगों के जुवानी जंग
सहमे-सहमे हैं आजकल खंजर लिखें ।
शौक से इलज़ाम लगाना अजय गैरों पे
झांक कर आप खुद के भी अन्दर लिखें ।
-अजय प्रसाद