आज़ाद गज़ल
सियासत में बली के बकरे कौन,जनता
यां उठाए नेताओं के नखरे कौन,जनता।
संसद,संविधान,हुकूमत वो सब ठिक है
मोल लोकतंत्र से ले खतरे कौन,जनता ।
सारे ऐशो-आराम तो हैं लीडरों के लिए
भूखे-नंगे सडकों पर उतरे कौन,जनता ।
गरीबी,बेरोजगारी,किसानों की लाचारी
तमाम त्रासदियों से बिफरे कौन, जनता ।
हालात और हक़ीक़त बदलता है कहाँ
खुद ही परेशानियों से उभरे कौन,जनता।
-अजय प्रसाद