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10 Aug 2021 · 2 min read

अभी तो अपने आप से रूबरू हुई है

रंगीन बड़ी बिंदी, काजल की धार,
गुलाबी लिपस्टिक, खुले रंगे बाल
चटक रंग की साड़ी, मैचिंग चूड़ियाँ,
अब भी वो शौक़ से पहनना चाहेगी!

अभी तो अपने आप से रूबरू हुई है
पचास पार ही तो ज़िंदगी शुरू हुई है…

खाना ठेले की क़ुल्फ़ी, फुल्की, चाट,
रोमांटिक मूवी देखना ‘उनके’ साथ,
बारिश की बौछार में होकर सरोबार,
पॉप-जैज़ अब भी मगन सुनना चाहेगी!

अभी तो अपने आप से रूबरू हुई है
पचास पार ही तो ज़िंदगी शुरू हुई है…

छुट्टी चाहेगी रसोई से तीज त्योहार पर,
पटाके, गुलाल, पंडाल के लुत्फ़ उठाएगी,
खिलखिलाकर हँसने पर से कर्फ़्यू हटे,
बिन सेंसर के दिल की बात कहना चाहेगी

अभी तो अपने आप से रूबरू हुई है
पचास पार ही तो ज़िंदगी शुरू हुई है…

बचपन, जवानी की नींव बनाने में बीता,
जवानी, रिश्तों, ज़िम्मेदारियों में उलझा,
खुद को भूले, अरसे से, अब याद आया,
जो मन चाहता है वो सब करना चाहेगी

अभी तो अपने आप से रूबरू हुई है
पचास पार ही तो ज़िंदगी शुरू हुई है…

तो क्या जो बच्चे शादीशुदा हैं सब,
तो क्या नाती पोतों की अम्मा है अब,
सूती, फीके रंगों को क्योंकर अपनाए?
अब भी पहले सी ही सुंदर लगना चाहेगी ।

अभी तो अपने आप से रूबरू हुई है
पचास पार ही तो ज़िंदगी शुरू हुई है…

तो न तानों ये भौहें, न सिकोड़ो नाक,
पीठ पीछे न धरो नाम, न बनाओ बात,
उम्र का क्या लेना देना शौक़ से ‘महवश’,
कम से कम अब अपने सा रहना चाहेगी!

अभी तो अपने आप से रूबरू हुई है
पचास पार ही तो ज़िंदगी शुरू हुई है…

सर्वाधिकार सुरक्षित-पूनम झा ( महवश)

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 225 Views

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