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4 Aug 2021 · 2 min read

शृंगार छंद "तड़प"

शृंगार छंद “तड़प”

सजन मत प्यास अधूरी छोड़।
नहीं कोमल मन मेरा तोड़।।
बहुत ही तड़पी करके याद।
सुनो अब तो तुम अंतर्नाद।।

सदा तारे गिन काटी रात।
बादलों से करती थी बात।।
रही मैं रोज चाँद को ताक।
कलेजा होता रहता खाक।।

मिलन रुत आई बरसों बाद।
हृदय में छाया अति आह्लाद।।
बजा इस वीणा का हर तार।
बहा दो आज नेह की धार।।

गले से लगने की है चाह।
निकलती साँसों से अब आह।।
सभी अंगों में एक उमंग।
हुई जैसे उन्मुक्त मतंग।।

देख लो होंठ रहें है काँप।
मिलन की आतुरता को भाँप।।
बाँह में भर कर तन यह आज।
छेड़ दो रग रग के सब साज।।

समर्पण ही है मेरा प्यार।
सजन अब कर इसको स्वीकार।।
मिटा दो जन्मों की सब प्यास।
पूर्ण कर दो सब मेरी आस।।
*** *** ***
शृंगार छंद विधान –

शृंगार छंद बहुत ही मधुर लय का 16 मात्रा का चार चरण का छंद है। तुक दो दो चरण में है। इसकी मात्रा बाँट 3 – 2 – 8 – 3 (ताल) है। प्रारंभ के त्रिकल के तीनों रूप मान्य है जबकि अंत का त्रिकल केवल दीर्घ और लघु (21) होना चाहिए। द्विकल 1 1 या 2 हो सकता है। अठकल के नियम जैसे प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द का समाप्त न होना, 1 से 4 तथा 5 से 8 मात्रा में पूरित जगण का न होना और अठकल का अंत द्विकल से होना अनुमान्य हैं।

शृंगार छंद का 32 मात्रा का द्विगुणित रूप महा शृंगार छंद कहलाता है। यह चार पदों का छंद है जिसमें तुकांतता 32 मात्रा के दो दो पदों में निभायी जाती है। यति 16 – 16 मात्रा पर पड़ती है।
*** *** ***
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया
01-08-2016

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