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25 Jul 2021 · 4 min read

डोली से शमशान तक

डोली से शमशान तक

शादी एक ऐसा बंधन है, एक ऐसा नाम है; जिसे सुनते ही हर कुंवारी लड़की के चेहरे पर लज्जा जा का भाव आ जाता है। शादी का नाम सुनते ही एक कुंवारी लड़की कल्पनाओं की ऊंची उड़ान भरने लगती हैं। उसे ऐसा लगता है कि उसके जीवन में एक नया मोड़ आने वाला है उसे एक ऐसा पति मिलने वाला है जो उसका हमेशा ध्यान रखेगा। वह प्यार के पंख लगाकर आसमान में अपनी ख्वाबों की शहजादे के साथ कहीं खो जाना चाहती है।

कितना सुखद एहसास है ** शादी !! आज मैं आपको एक ऐसी लड़की की कहानी सुनाने जा रही हूं जिसका नाम क्षमता था। उसे भी शादी नाम से बहुत प्यार था। अपनी शादी का बेसब्री से इंतजार था।जल्द ही वह दिन आ गया जब उसको शादी के लिए अपने सपनों का राजकुमार मिल गया था।
सुंदर, सुशील, संस्कारी, ना तो वह शराब पीता, न ही किसी प्रकार कोई नशा करता था।
अपनी पत्नी का ख्याल बिलकुल सपनों की शहजादे की तरह ही रखता था। प्रभु में उसकी इतनी आस्था थी कि वह दिन में दो बार मंदिर, गुरुद्वारे और पीर बाबा की दरगाह जाया करता था।
इतना अच्छा पति मिलने पर सब क्षमता की किस्मत और उसके सौभाग्य की प्रशंसा करते न थकते थे।
क्षमता ने भी ससुराल में सबका मन जीत लिया और सब की चहेती बहू बन गई । कहीं जाना है तो क्षमता, कुछ लाना है तो क्षमता, कुछ पूछना है तो क्षमता।

वह तो हारसिंगार की देवी थी। जब देखो उसके चेहरे पर एक अनूठी चमक और वह सिर से लेकर पांव तक सदा सजी-संवरी रहती
थी।
पर अफसोस कुछ लोगों की नजर उसे लग ही गई। शादी हुए
4 साल से अधिक समय हो गया था। पर घर में कोई संतान नहीं थी। जिसने जो पीर, मंदिर,मस्जिद जहां मन्नत मांगने को कहा, वहां गई। फिर किसी ने उसे लड्डू गोपाल रखने की सलाह दी ताकि उसके घर में भी वैसे ही भगवान आ सके।
देर किस बात की थी। लड्डू गोपाल जी लाए गए। मंदिर में 2 दिन तक उन्हें स्थापित करके घर में लाया गया। अब उनकी देखरेख, उनकी संभाल बिल्कुल एक बच्चे की तरह होने लगी। नित नए कपड़े, श्रृंगार का सामान आता है। हफ्ते में एक बार लड्डू गोपाल जी के साथ साथ गौशाला घूमने जाते। 1 साल बीत गया।लड्डू गोपाल जी का जन्मदिन बड़ी धूमधाम से मनाया गया। तभी उसे पता चला कि उसके घर में भी एक छोटा सा लड्डू गोपाल आने वाला है। चारों तरफ खुशियों की लहर दौड़ गई और 9 महीने बाद उसके घर में एक अति सुंदर बालक ने जन्म लिया। बालक इतना सुंदर और आकर्षक था कि जिसके हाथ में आता था उसका उसे वापस देने का मन ही नहीं करता था। वह बालक अपनी माता के पास कम और अपने दादा दादी के पास अधिक रहने लगा ।यह बात क्षमता को बहुत बुरी लगती और वह रोने लगती। पर ससुराल में किसी से कुछ ना कहती। मायके में आकर रोकर मन हल्का कर लेती। बालक को उसकी मां के पास सिर्फ तब दिया जाता जब उसकी जिम्मेवारी उसे दूध पिलाने की होती। अब बालक 1 साल का हो गया था और वह अपनी मां को मां नहीं अपितु दादी को मां और दादा को पापा कहता।
जब बालक लगभग डेढ़ साल का हुआ तो उसके देवर की शादी हो गई घर में देवरानी आई। अब क्षमता की किस्मत बदलनी शुरू हुई ।उसके पति का काम थोड़ा कम हुआ। और अब घर के सारे काम की जिम्मेदारी उस पर आ गई ।पूरा दिन घर का काम करके रात को थक जाती। अब उसे ससुर की गालियां और ताने सुनने पड़ते कभी कभार पति भी कुछ सुना देता था। एक बार ससुराल से लड़कर मायके आई, पर मायके आकर पता चला कि पिता की तबीयत बहुत खराब है और अगले 10 दिनों में उसके पिता चल बसे इसलिए दोबारा वापस अपने ससुराल चली गई।उसके पिता की मृत्यु के बाद उसको मायके जाने की अनुमति नाममात्र ही मिलती क्योंकि घर के
काम का बोझ अब उस पर था। काम अधिक होने के कारण अब उसकी तबीयत खराब रहने लगी, अक्सर उसको बुखार हो जाया करता। उसकी तरफ उसके ससुराल वालों ने ध्यान देना बंद कर दिया था। शरीर दिन-ब-दिन कमजोर होता जा रहा था। धीरे-धीरे काम का बोझ बड़ता गया और उसके खाने की मात्रा कम होती चली गई और एक दिन ऐसा आया जिस दिन वह बीमार हो गई।
हस्पताल के नाम पर उसे एक छोटे से नर्सिंग होम में दाखिल करवाया गया। जहां पर किसी भी तरह की कोई सुविधा नहीं थी। जब उसके मायके वाले उससे मिलने आए तो कह दिया गया कि हमारे पास इसका इलाज करवाने के पैसे नहीं है यदि आप इसका इलाज करवा सकते हैं तो करवा दीजिए। उसे जब अस्पताल ले जाया गया तो वहां पर डॉक्टर उसकी हालत देखकर हड़बड़ा गया और गुस्से से बोला कि अब जब यह पूरी खत्म हो चुकी है इसे मेरे पास इलाज के लिए क्यों लेकर आया गया है। उसकी उम्र मात्र 31 वर्ष थी डॉक्टर ने बताया कि इसने 1 साल से कुछ अच्छे से खाया ही नहीं इसीलिए उसके शरीर ने अंदर से इसको ही खा लिया। यदि यह बच गई तो इसे चमत्कार ही समझना। उसकी हालत काफी नाजुक थी पर अस्पताल के ट्रीटमेंट से एक दिन तो उसकी तबीयत में थोड़ा सुधार लगा पर डेढ़ दिन के बाद रात को उसको हार्ट अटैक आ गया और उसी वक्त उसकी मृत्यु हो गई । वही उसका शहजादा पति जब वह बीमार थी उससे मिलने के लिए एक पल के लिए भी उसके कमरे में नहीं गया। इतनी बुरी हालत में भी वह अपने पति को इशारे से बुला रही थी शायद कुछ कहना चाहती थी पर उसकी यह इच्छा भी पूरी नहीं हो पाई।अपने ढाई साल के बच्चे को छोड़कर सदा के लिए
मौन हो गई। मातृत्व सुख भी भोग नहीं पाई।

सधन्यवाद
रजनी कपूर

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