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4 May 2024 · 2 min read

*बाढ़*

बाढ़

बादल से गिरती हुई बूंदे,
जो परस्पर बन जाती हैं,

सैलाब, सुनामी, बाढ़ इत्यादि!

खो देती है अपना संयम,
बहा ले जाती हैं,

न जाने कितने घरों की दीवारें!

जिन दीवारों में,
अनगिनत लोग पले-बढ़े,

बन जाती है वह धूमिल यादें!

क्षण भर में बहा ले जाती हैं,
संपूर्ण जीवन की जमा पूंजी!

त्राहि-त्राहि मच जाती है जल से,
कमी से जल की कहीं है सूखा,

तो अति से, कहीं है बाढ़!

अति भी जीवन में अच्छी नहीं,
फिर चाहे वस्तु हो या भावनाएँ!

बाढ़ के साथ बह जाती है,
न जाने कितनी ही खुशियां!

ढ़ह जाते हैं न सिर्फ,
मकान, खेत, खलिहान,

विद्यालय, दुकान, सामान,
अपितु कई खुशरंग जीवन,

और उनकी कलाकृतियां!!

लहरों की क्रोधाग्नि से,
ढंह जाते हैं,

जीवन व्यतीत करते,
अनगिनत परिवार!

ओह!
मुन्नी की गुड़िया भी जलमग्न हो गई!

वो गुड़िया, जो संगिनी,
सखी, सहेली थी मुन्नी की,

मुन्नी जिसको सजाती,
दुल्हन बनाती!

और वह लकड़ी का घोड़ा,
जिस पर बैठकर मुन्ना,

कोसों दूर निकल जाता,
कल्पनाओं में!

वह भी जलमग्न हो गया!!

जलमग्न हो गया वह खेत भी,
जिसमें खेलते बीत रहा था,
उनका जीवन!!

बाढ़, तो बचपन भी
बहा ले जाती है

हर तरफ होता है,
सिर्फ जलभराव!!

शहर के शहर हो जाते हैं जलमग्न,

जलमग्न हो जाती हैं,
लोगों की संवेदनाएं, आशाएं,

विविधिताएं, क्षमताएं!!

कहीं रस्सी तो कहीं,
चट्टानों के सहारे,

पार करते हैं लोग सैलाब को,

कुछ बह जाते हैं
लहरों की तीव्र गति में,

तो कुछ की हो जाती है,
जीवन लीला समाप्त!

मृत्यु काल परिचित सा लगता है,
कभी भी होता है सामने,

फिर चाहे वह बाढ़ हो,
सुनानी हो, सैलाब हो या

फिर कोई प्राकृतिक आपदा!!
डॉ प्रिया।
अयोध्या।

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