Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
12 Jul 2024 · 1 min read

कलयुग की छाया में,

कलयुग की छाया में,
पैसों की माया पनप रही है !
यहाँ जिसकी है जेब गर्म,
केवल उसकी हर बात बन रही है !!

भ्रष्टाचार की आग में,
क़ाबिल की मेहनत झुलस रही है !
हर एक सिस्टम और दफ्तर में,
केवल “पहचान-पहुँच” चल रही है !!

प्रतिभा की बात नहीं,
अब चाटूकारिता ही बिक रही है !
यही है आज हर ओर की सच्चाई,
जो सभी की नीयत को खोखला कर रही है !!

~निहारिका वर्मा

Loading...