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19 Jul 2021 · 2 min read

“आधी रात के बाद”

वो शाम थी; ठीक ऐसे ही बारिश वाली; मौसम सर्द ;
आधी रात के बाद का वक्त,
सड़क बिल्कुल सुनसान,
सड़क किनारे वो खड़ी; जैसे ही दूर हेडलाइट की रोशनी नजर आती;
उम्मीद की लाइट भी जल उठती,

ट्रक…नहीं नहीं; मन कहता और ठीठक जाती,
दो-चार कदम चलती रुकती; फिर दूर आ रही हेडलाइट एक और उम्मीद की रोशनी,

उसने दोनों हाँथ जोड़े; ऊपर देखा; मन ही मन कह उठी
ईश्वर जो चाहते हो वो करो….

थोड़ी-थोड़ी देर पर ट्रक छोटे-बड़े और नाउम्मीद,
अचानक एक गाड़ी आती दिखी;
हिम्मत कर के हाँथ दिया;
वो रुक गई,

भैया…..अगर….. उस तरफ जा रहे हैं तो छोड़़ दिजिये! प्लीज…..बहुत जरूरी है जाना,
वो स्टेरिंग पर हाँथ थामें खिड़की से बाहर देखता है;
शांत…जैसे दिमाग में कुछ चल रहा हो…कुछ मिनट;
मौन को जीता वो 22/23साल का सख्श बैठने का इशारा करता है।

बैठने के बाद अहसास हुआ…खिड़की है पर शीशा नहीं…गाड़ी टुटी-फुटी जैसे पुरानी भुतों वाली फिल्मों में होती है और मन बार-बार जैसे बस ईश्वर को पुकार रहा रहा हो।

तभी
डर लग रहा है दीदी
डर में डुबी पर …..कहा….नहीं भैया…धन्यवाद मदद करने के लिये…आपकी रात की सिफ्ट है ?

वो चूप;
फिर…थोड़ी देर बाद…क्राइम का कोई सिफ्ट नहीं होता दीदी
रोम-रोम सिहर उठा…बारिश और ठंढ के बावजूद पसीना माथे पर,
तभी…डरिये मत दीदी हम इंसानों को नहीं मारते।

आपको कैसे पता
जिस जगह; जिस वक्त आप खड़ी थीं और कोई वजह नहीं खड़े होने की…हमारा रोज का आना-जाना है,
डर नहीं लगता ?
बेल पे हैं दीदी
छोड़ क्यूँ नहीं देते काम ?
मरना तय है दीदी…छोड़ दिया तब भी….नहीं छोड़ा तब भी…पेशा ही ऐसा है।

बस यहीं आगे यहीं रोक दिजिये ! यहीं उतरना है; कहते हुये जेब में हाँथ डाला; एक नोट था सौ का….रख लिजिये भैया !
भाड़ा दे रही हैं
नहीं चाय पी लिजीएगा दीदी की तरफ से।

कभी जरूरत पड़े तो याद किजीएगा दीदी
कैसी जरूरत ?
जिंदगी का भरोसा नहीं है दीदी, एक पल में सब पलट जाता है….जाइये अब।

गाड़ी से नीचे उतरते ही कदम तेज होते; इससे पहले
अचानक जैसे कुछ अजीब सी आवाज…. पलटते….पैरों तले जमीन नहीं थी…..वहाँ कुछ नहीं था….न वो टुटे शीशे वाली गाड़ी न ही स्टेरिंग…. बस था तो अँधेरा…
डर अपने चरम पर; माथे पे पसीना देख जैसे अचानक कह उठा…
वो समय था और कोई नहीं पगली
तुम बढ़ो अपने गंतव्य की ओर क्योंकि तुम्हारा ईश्वर यही चाहता है इसवक्त……

और तेज कदमों की आहट अब भी शुक्रगुजार उस साये की,
यकीन नहीं कर पा रहा था…वो सच में थी कोई आत्मा।
©दामिनी नारायण सिंह

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