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12 Jul 2021 · 1 min read

कह दो इन आँसुओं से....

…कह दो इन आँसुओं से…

कह दो इन आँसुओं से, वापस फिर न आना
मुझे साथ सनम के, भाता है मुस्कुराना !

न जाने क्यों है रूठा, ख़ता क्या थी मेरी
तेवर तो देखो उसके, कैसे हैं कातिलाना !

लाख जतन करके, हाय रे ! मैं तो हारी
कोई तो मुझे सिखाए, कैसे उसे मनाना !

जाऊँगी अब कहाँ मै, जानता है वो भी
उस बिन नहीं जहां में, मेरा कोई ठिकाना !

अपनी-अपनी धुन में, मगन यहाँ तो सारे
सुने न कोई मेरी, बड़ा मगरूर है जमाना !

याद आए रह-रह, वो गुजरा हुआ जमाना
समां वो हद से प्यारा, बातें वो आशिकाना !

चैन चुराएँ मन का, सुकून भी हर लें सारा
कातिल निगाहें उसकी, मौसम वो शातिराना !

बात कभी न मेरी मानी, की सदा मनमानी
ए वक्त, अब तो तुम ही उसके नाज उठाना !

रूठा रहे वो मुझसे, न देखे चाहे पलट के
मैयत पे मेरी पल भर, कोई उसे ले आना !

उसने जो भी चाहा, हर बात उसकी मानी
अब जैसे उसे पसंद हो, वैसे मुझे सजाना !

लंबी उमर को उसकी, उपवास मैंने रखा
मन-मानस में बिंबित, देखा रूप सुहाना !

जहाँ-जहाँ वो जाए, उसे याद दिलाए मेरी
गुंजित हो हर दिशा में, मेरा ये नेह-तराना !

समर्पित तुम्हें फिज़ाओं, मनके मेरे मन के
मैं न रहूँगी जब, तुम्हीं इनको गुनगुनाना !

मैं हूँ उसकी ‘सीमा’, विस्तार है वो मेरा
कैसे उसे मैं ढूँढूँ, कहाँ उसका आशियाना !

– © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
“मृगतृषा” से

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