Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Jul 2021 · 9 min read

” मित्रता की बेल “

आज जब सोकर उठा, तो घुरई बड़ा अनमना सा था।
कल रात पहली नींद तो थकान के मारे आ गई थी परन्तु फिर जो आँख खुली तो न जाने क्यों एक पटकथा की भाँति कोई पाँच महीने पहले का पूरा परिदृश्य ऐसा घूमा कि रुकने का नाम ही न ले रहा था।
कोई डेढ़ हज़ार की आबादी वाला छोटा सा गाँव “नरायनपुर” जहाँ सब एक दूसरे को क़रीब से जानते थे। वो ख़ुद भी तीन बीघे के खेत मेँ जैसे-तैसे बसर कर ही रहा था। यूँ तो पूरे इलाके मेँ ठाकुर रघुनाथ सिंह की दबँगई का डँका बजता था परन्तु उनका इकलौता बेटा राजेश बचपन मेँ गाँव के ही स्कूल मेँ घुरई के साथ पढ़ा था। पढ़े भी क्या, यूँ कह लें कि साथ-साथ खेलकूद कर ही बड़े हुए थे, सो ख़ूब छनती थी। घुरई के खेत से ही सटा कोई 60 बीघे का ठाकुर साहब का फार्म था। स्कूल, हाट या मेले से लौटते वक़्त दोनों के बीच की मेड़ की जानिब ही माहिल हो जाना दोनों को भाता था और घँटे भर बैठकर, कभी मास्टर जी की, तो कभी गाँव के किसी और की खोचड़ी उड़ाना, राजेश का प्रिय शगल था, बहरहाल चैन की बँशी दोनों की इसी मेँ बजती। कभी कभार लड़ाई होना भी लाजमी था परन्तु एक रात बीतते ही अगले दिन दोनों ऐसे मिलते कि मुद्दतोँ के बिछड़े होँ। आठवीं के आगे अगर राजेश न पढ़ पाया, तो रईसी के चलते और घुरई अपनी मुफ़लिसी की वजह से।
वक़्त बीतता गया। पुश्तैनी छोटी सी ज़मीन के टुकड़े मेँ कुछ न कुछ पैदा करके, कुछ मजदूरी आदि करके बूढ़ी माँ, साथ मेँ मेहनती, सुघड़, शीलवान जोरू- सुगनी, भले ही गुज़र-बसर हो रही थी, परन्तु अब एक चाँद के टुकड़े से, टीटू के आ जाने से, कुछ तो ख़र्च बढ़ ही गया था,फिर भी ऐसी कोई ख़ास दिक्कत कभी दरपेश नहीं आई। हाँ, पिछले महीने ब्लाक पर लगे दशहरे के मेले मेँ टीटू एक हाथी के लिए मचल गया था जो कि 70 रुपये का होने के कारण उसे न दिला पाने पर मन मसोस कर ज़रूर रह जाना पड़ा था। फिर भी, दिन भर की जी तोड़ मेहनत के बाद जब भी घुरई, घर लौटता तो टीटू किलकारी मारकर उसकी तरफ ऐसे दौड़ता, मानो कोई ख़जाना दिख गया हो, अब दो साल का जो हो चला था और पूरा परिवार मानो इतनी सी ख़ुशी मेँ ही सन्तृप्त हो जाता।
उधर, ठाकुर साहब से उसके सम्बन्ध भी कुछ विचित्र ही थे, उनका तो रवैया ऐसा था कि गाँव मेँ जैसे पूरी उनकी ही रियाया बसती हो, हालांकि नीची जाति का होने के बावजूद ये बात घुरई ही था, जो दिल से नहीं मानता था, और यही ठाकुर साहब को अखरता भी था, राजेश से उसकी दोस्ती को तो ख़ैर उन्होंने कभी अहमियत दी ही नहीं। उनके रसूख़ का तो आलम ही ये था, कि दो एकड़ के रक़बे मेँ शानदार कोठी, आसपास के गांवों को मिलाकर सैकड़ों बीघे ज़मीन, तीन ट्रैक्टर, 5 भैँसेँ ,सैर सपाटे के लिए एक शानदार रासी घोड़ा, महिन्द्रा की एक खुली जीप और चमचमाती इनोवा। असलाह वग़ैरह की तो ख़ैर गिनती ही नहीं। इलाके के अफ़सरों का भी आना-जाना लगा ही रहता था। बहरहाल, विस्तारवाद के प्रति घुरई की मुखिल सोच प्रधानी के पिछले चुनाव मेँ, दबी ज़बान ही सही, ज़ाहिर हो ही गई थी और ठाकुर साहब के आदमी उसे सबक़ सिखाने की धमकी भी दे गए थे।
ज़मीन-जायदाद के मामलों मेँ दख़लअंदाज़ी की वैसे भी राजेश को इजाज़त नहीं थी। कल पहली बार ठाकुर साहब के लठैत घुरई के खेत और ठाकुर साहब के फार्म के बीच की मेड़ भी कुछ ऐसे जोत गए थे कि उसका आधा बीघा खेत ही चला गया था। बड़ी उद्विग्नता हुई घुरई को, परन्तु ठाकुर साहब से बैर लेने का मतलब उसे बख़ूबी मालूम था और ऐसे मामले मेँ राजेश कुछ कर पाएगा इसकी उसे न कोई उम्मीद थी और न ही उसकी ख़ुद्दारी उसे कुछ कहने दे रही थी, मानो वह-

” विपति पड़े पै द्वार मित्र के ना जाइये ”

को ही आत्मसात कर चुका हो।
बहरहाल, असाधारण ऊहापोह मेँ कुछ दिन बीत तो गए लेकिन एक-एक दिन एक बरस से कम भी न लगता था, ऐसा लगता था कि गांव वालों की निगाहें बस उसके अगले कदम का ही इन्तज़ार कर रही होँ। अन्ततोगत्वा, स्थिति असहनीय हो जाने पर एक दिन सुबह-सवेरे निकल पड़ा था घुरई, बम्बई, कुछ काम की तलाश मेँ, सिर्फ़ सुगनी को बताकर क्योंकि उसे मालूम था, माँ किसी कीमत पर न जाने देगी।
आसपास के गाँवोँ के कई लड़के वहाँ थे भी, सो बोरीवली की एक चाल जिसका पता उसे मालूम था, नया ठिकाना बना जहाँ 4-5 दिनों की अथाह खोजबीन के बाद एक बिस्किट फैक्ट्री मेँ 11000 रुपए महीने की पगार पर नौकरी मिल गई। गाड़ी चल निकली थी, और सब ख़र्च निकाल कर भी महीने मेँ 6000 तो बचने ही लगे थे। महीने मेँ एक-आध बार बाज़ार घूमना भी होने लगा, माँ के लिए एक सुर्मई शाल ली तो सुगनी की ख़ातिर भी कुछ छुटपुट ख़रीदारी होने लगी। एक हाथी टीटू के लिए भी 150 रुपए मेँ ख़रीदा, नीले और लाल रँग का, जो हाथी उसे मेले मेँ पसन्द आया था, उससे लाख दर्जे अच्छा- वाक़ई इस बार बड़ा मज़ा आएगा घर जाकर, इतना महँगा खिलौना पहली बार जो लिया है।
विधाता को शायद ये भी मन्ज़ूर नहीं था। शहर भर मेँ “कोरोना” ने दस्तक देते ही पाँव भी बड़ी तेज़ी से पसार लिए थे और हर रोज़ चाल मेँ भी इक्का-दुक्का मौत की ख़बरें आनी शुरू हो गई थीं। बाहर बड़ा शोर सुनकर घुरई भी निकला तो पता चला दो घर छोड़ कर आज भी एक मजदूर की इसी से मौत हुई है। फैक्ट्रियों पर ताला लगने की नौबत आ गई है क्योंकि लाकडाउन लग जाने की पूरी सम्भावना है और मजदूर तेज़ी से पलायन करने को मजबूर हैं।
किसी अनिष्ट की आशंका से सबकी देखादेखी उसने भी अपना सामान समेटा और चलने की पूरी तैयारी करने लगा। फैक्ट्री के मालिक ने भी इस बावत बतौर इत्तेलाह व मदद, 1000 रुपया भिजवा कर, मानो अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी। जैसे ही चाल से बाहर निकलने को हुआ तो ध्यान आया कि हाथी तो वहीँ छूट गया है ,सो जल्दी से उसे भी लेकर ऐसे प्रस्थान किया मानो अथाह सम्पत्ति सँग ले जाने को मिल गई हो..!
खचाखच भीड़ स्टेशन पर और रेलगाड़ी मेँ घुसने की भी जगह नहीं, बहरहाल किसी तरह दो दिन का सफ़र पूरा कर गाँव पहुँचने को हुआ तो रात हो चुकी थी। रेलगाड़ी से उतर कर जब बस मेँ चढ़ा तो वहाँ ये बात पूरी चर्चा का विषय थी कि गाँव-गाँव, दिल्ली-बम्बई आदि शहरों से वापस आए मजदूरों की तलाश की जा रही है, क्वारँटीन सेन्टर मेँ रखने हेतु, कोरोना के चलते। सभी मुसाफ़िर, मुख़्तलिफ़ तरीकों से इसका विश्लेषण भी कर रहे थे, कोई तो बीमारी रोकने के लिए सरकार की सख़्ती को जायज़ ठहरा रहा था तो कोई इसे मजदूरों पर अत्याचार बता कर सहानुभूति बटोरते न थकता था। मन उदासी से भरा जा रहा था परंतु इतने दिनों बाद परिवार से मिलने की उत्कंठा मानो अभूतपूर्व ऊर्जा का सँचार कर रही थी, सो कूदते फाँदते, सबकी नज़रों से बचते-बचाते, आख़िर देर रात घर पहुंच कर ही दम ली।
टीटू तो सो चुका था, माँ को भी इतनी रात को होश कहाँ। सुगनी तो मानो ख़ुशी से पागल हुई जा रही थी, जब तक घुरई हाथ-मुँह धोकर आया, उसने चाय बनाकर बिस्किट के साथ सामने रख दी, सास के सामने तो कुछ बोलने की हिम्मत न पड़ती थी पर आज एक तो एकांत और फिर इतने दिनों के वियोग ने भी कुछ हिम्मत बँधा दी, जब रहा न गया, तो पूछ ही बैठी-

“टीटू के पापा, का हमारि यादउ करत रहौ कबहूँ बम्बई मा ?”

फ़ौरन जवाब भी पा गई-

“बस पूछि ना, सुगनिया,… इँघे, कछु दिनन से त कछु जादाइ। भगवानौ खूबइ सुनिन, मौकौ तुरतहिं निकारि दिहिन इ करोना का बहाने ”

इतना कहते ही उसने सुगनी को कस के भीँच लिया, कसमसा के रह गई परन्तु यह क्या- जैसे ही सुगनी ने उसके माथे पर हाथ रखा, तो देखा, घुरई बुख़ार से तप रहा था, पूरी रात पानी से पट्टी करते ही बीती। सुगनी ने भी बताया कि अस्पताल वाले दिन मेँ पूछने आये थे गाँव मेँ, कि कोई शहर से वापस तो नहीं आया है। घुरई ने भी सख़्त ताक़ीद कर दी कि टीटू को बाहर न निकलने देना, कहीँ उसके आने की बात उगल न दे।
सुबह हुई, टीटू तो कुछ देर उससे लिपटा ही रहा, उधर बूढ़ी माँ बलैयाँ लेते न थक रही थी, और जो रोज़ घुटनों मेँ दर्द से कराहती रहती थी, आज लाड़ले को देखकर तीन बार नज़र उतार चुकी थी, फिर भी न तसल्ली हुई तो झाड़ू थुकथुका कर टोटका भी सबकी निगाह बचाकर करना नहीं भूली थी।। हाथी देखकर तो टीटू मगन ही हो गया। मगर घुरई के आने की बात छिपती भी कैसे, टीटू का बाल-सुलभ मन न माना और हाथी लेकर बाहर जो चला गया था खेलने, साथियों के सँग और फिर ऐसा हाथी गाँव के बच्चों ने कभी देखा भी कहाँ था, हाँ 5-10 रुपए के फुकने, झुनझुने या भोँपुओँ की बात दीगर थी।
कोई दो घंटे भी नहीं बीते होँगे कि स्वास्थ्य विभाग की टीम आई और घुरई को क्वारँटीन सेन्टर ले गई जो कि लगभग 15 km. दूर था। उसका रैपिड एन्टीजेन टेस्ट पाज़िटिव आ गया था, “कोरोना” के लिए, सो 14 दिन अब तो यहीं रुकना था। किसी को भी वहाँ जाने की इजाज़त नहीं थी। बहरहाल, गाँव मेँ इतनी बात तो सबको पता थी ही कि मेड़-विवाद के कारण घुरई बम्बई चला गया था, अब “कोरोना” हो जाने के चलते तो उसके लिए मानो सहानुभूति का ज्वार ही उमड़ पड़ा और पूरा गाँव उसके लिए दुआ करने मेँ लग गया।
उधर राजेश भले ही सर्व-व्यसनों मेँ लिप्त रहता था,और गाँव मेँ रहते,तो अब साधारणतया घुरई से मिलना भी नहीं होता था परन्तु उस रात अपने बाल-मित्र को देखने को व्याकुल हो उठा। शायद बचपन की दोस्ती का अँकुर अभी सूखा जो नहीं था। ठीक भी है-

“मथत मथत माखन रही, दही मही बिलगाव।
रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराय।।”

अगली ही रात अपने तीन-चार साथियों के साथ क्वारँटीन सेन्टर जा धमका था राजेश। ख़ुद के तो लगी ही थी, चौकीदार को भी एक बोतल देकर अन्दर घुरई से ख़ूब बातें कीँ–

“एक तो बचपन के सखा, और फिर दारू का नशा”,

दर्शन शास्त्र का इससे अद्भुत व्याख्यान शायद ही कभी किसी को सुनने को मिला हो..! जब भी घुरई उससे मास्क लगाने को कहता, राजेश उसके मास्क को भी हटा देता।
बहरहाल, तीसरे दिन के बाद, घुरई को तो बिल्कुल बुख़ार नहीं आया, दवाइयोँँ भी मिल रही थीं, खाना-पीना भी मिल ही रहा था, शनैः-शनैः स्वास्थ्य लाभ होने लगा।
उधर 5-6 दिन बाद राजेश को बुख़ार खाँसी एक साथ शुरू हो गए और दो तीन दिन मेँ ही साँस भी फूलनी शुरू हुई, सीधे लखनऊ जा कर दिखाया तो पता चला उसे भी कोरोना हो गया है, साथ मेँ शुगर भी 500 mg से ऊपर पाई गई। फ़ौरन हास्पिटल मेँ भर्ती किया गया, सुधार न होने पर वहाँ से पी0जी0आई0 भी रेफ़र कर दिया गया।
3-4 दिन तक यही ख़बर मिलती रही कि आक्सीजन स्तर मेँ लगातार गिरावट के कारण राजेश वेन्टीलेटर पर है। ठाकुर साहब का रो-रो कर बुरा हाल था। उधर हवेली मेँ उसकी सलामती के लिए निरन्तर पूजा-पाठ चल रहा था, पुरोहित ने गऊ-दान एवं पाँच कुँवारी कन्याओं के वैवाहिक ख़र्च को वहन करने का सँकल्प भी दिला कर जी भरके दक्षिणा वसूली थी। हवेली को किसी बुरी नज़र के साए से निजात दिलाने दूर-दूर से ओझे भी बुलाए गये थे जो एक-दो दिन रुककर, भभूत लगाकर, तरह-तरह के कौतुक कर, मालपुए और खीर खाकर, ख़ासी रक़म ऐँठ कर चलते बने थे।इस बीच राजेश ने अपने पिताजी से घुरई के खेत को पूर्व-स्थिति मेँ बहाल करने की विनय भी की जिसे उन्होंने तुरत स्वीकार भी कर लिया परन्तु उसकी हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती ही गई और आख़िरकार एक दिन वही हुआ जिसका डर इतने दिनों से सता रहा था और पता चला कि उसका पार्थिव शरीर भी घर ले जाने हेतु नहीं दिया जाएगा……!
ठाकुर साहब तो मानो ज़िन्दा लाश बन चुके थे।
क्वारँटीन अवधि पूरी करने के बाद जब घुरई खेत पर पहुँचा तो उसे अपने खेत की मेड़ पीछे खिसकी हुई मिली, जिसमेँ एक टहनी लहलहा रही थी जो औरों की नज़र मेँ भले ही सेम की थी परन्तु उसकी नज़र मेँ वो थी, तो बस अटूट मित्रता की, बचपन से ही उमड़े आपसी प्रेम और सौहार्द्र की।
आज राजेश तो उसकी दृष्टि मेँ ऊँचा उठता जा रहा था परन्तु जो बस गिरते ही जा रहे थे, वे थे घुरई के आँसू , जो मेड़ पर उग आई मित्रता की बेल को अजर अमर बनाने पर ही तुले हुए थे,…..अविरल……!

—-//———— //———–//———–//———-//—
विशेष-
“इस कहानी के सभी पात्र, स्थान एवं घटनाएँ काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति, घटना, अथवा स्थान से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति, घटना, अथवा स्थान से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग ही कहा जाएगा, एवं इसमें लेखक की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।

रचयिता-

Dr.asha kumar rastogi
M.D.(Medicine),DTCD
Ex.Senior Consultant Physician,district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist,sri Dwarika hospital,near sbi Muhamdi,dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M.9415559964

70 Likes · 176 Comments · 4515 Views
Books from Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
View all

You may also like these posts

होली खेलन पधारो
होली खेलन पधारो
Sarla Mehta
Jeevan ka saar
Jeevan ka saar
Tushar Jagawat
एक महिला जिससे अपनी सारी गुप्त बाते कह देती है वह उसे बेहद प
एक महिला जिससे अपनी सारी गुप्त बाते कह देती है वह उसे बेहद प
Rj Anand Prajapati
शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार पाना नहीं है
शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार पाना नहीं है
Ranjeet kumar patre
Mere papa
Mere papa
Aisha Mohan
प्रशांत सोलंकी
प्रशांत सोलंकी
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
"आँसू"
Dr. Kishan tandon kranti
मैं चट्टान हूँ खंडित नहीँ हो पाता हूँ।
मैं चट्टान हूँ खंडित नहीँ हो पाता हूँ।
manorath maharaj
4045.💐 *पूर्णिका* 💐
4045.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
"" *सुनीलानंद* ""
सुनीलानंद महंत
महब्बत मैगनेट है और पइसा लोहा
महब्बत मैगनेट है और पइसा लोहा
सिद्धार्थ गोरखपुरी
ये आवारगी
ये आवारगी
ज्योति
कुछ अच्छे गुण लोगों को महान बनाते हैं,
कुछ अच्छे गुण लोगों को महान बनाते हैं,
Ajit Kumar "Karn"
*रामपुर की अनूठी रामलीला*
*रामपुर की अनूठी रामलीला*
Ravi Prakash
नारी की महिमा
नारी की महिमा
indu parashar
कैसे हो हम शामिल, तुम्हारी महफ़िल में
कैसे हो हम शामिल, तुम्हारी महफ़िल में
gurudeenverma198
वट सावित्री व्रत
वट सावित्री व्रत
Sudhir srivastava
ज़िंदा एहसास
ज़िंदा एहसास
Shyam Sundar Subramanian
दो सीटें ऐसी होनी चाहिए, जहाँ से भाई-बहन दोनों निर्विरोध निर
दो सीटें ऐसी होनी चाहिए, जहाँ से भाई-बहन दोनों निर्विरोध निर
*प्रणय*
ग़ज़ल _ यूँ नज़र से तुम हमको 🌹
ग़ज़ल _ यूँ नज़र से तुम हमको 🌹
Neelofar Khan
ना तुझ में है, ना मुझ में है
ना तुझ में है, ना मुझ में है
Krishna Manshi
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
कमर तोड़ मेहनत करके भी,
कमर तोड़ मेहनत करके भी,
Acharya Shilak Ram
"मनुज बलि नहीं होत है - होत समय बलवान ! भिल्लन लूटी गोपिका - वही अर्जुन वही बाण ! "
Atul "Krishn"
आइए चलें भीड़तंत्र से लोकतंत्र की ओर
आइए चलें भीड़तंत्र से लोकतंत्र की ओर
Nitin Kulkarni
सोच के दायरे
सोच के दायरे
Dr fauzia Naseem shad
My Guardian Angel
My Guardian Angel
Manisha Manjari
एक ज्योति प्रेम की...
एक ज्योति प्रेम की...
Sushmita Singh
आओ छंद लिखे (चौपाई)
आओ छंद लिखे (चौपाई)
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
"प्यासा" "के गजल"
Vijay kumar Pandey
Loading...