वरसात
वरसात
घटाएंँ आज पुलकित हो सुनाती अब तराने हैं,
बरसती बूंँद के सबको बचाने नित खजाने हैं।
धरा ने भी सुगंधित पुष्प की चादर लपेटी ज्यों ,
भ्रमर मधुमास में आ गीत गाते अब सुहाने हैं।
चमन के स्वर्ण मोती को धरा की शान तुम समझो,
नई कलियांँ नई फसलें हमें सब ही बचाने हैं।
सभी को सींच ममता से बड़े अनमोल हीरे ये,
खड़े अवरोध करके बस बनाने क्यों बहाने हैं।
स्वयं रख हौसला दिल में भरोसा खो नहीं जाए,
सदा नभ में उड़ा करते परिंदे तो दिवाने हैं।
सुखद पर्यावरण रखना सरस सौगात वसुधा की,
हमें इस सृष्टि के सुरभित बचाने नित ठिकाने हैं।
प्रकृति समझा रही हरपल रखो आरोग्य जीवन,
चमकती धूप के अनुपम सुखद उजले जमाने हैं।
रेखा मोहन ६/६/२१ पंजाब