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20 May 2021 · 1 min read

बचपन और बरसात

बरसात
बूंद पड़ी ज्यों वसुंधरा पर, सौंधी खुशबू आई।
बचपन की यादें सारी, आंँखों के सम्मुख छाई।।

बच्चों की टोली का हुल्लड़, चिल्लाना,इतराना
छप छप करते इक दूजे के पैरों पर चढ़ जाना।
कागज़ की कश्ती भी हमने,दूर तलक थी बहाई
बचपन की यादें सारी, आंखों के सम्मुख छाई।।

दादी का वो प्यार झलकता, पूड़े और पकौड़ों में
हमने जम कर खूब उड़ाए, इक दूजे से होड़ों में।
मांँ के पल्लू से लिपटे,जब छींक जोर से आई
बचपन की यादें सारी, आंँखों के सम्मुख छाई।

मोर नाचते देखे हमने, खेत और बागानों में
ज्यों बिजली की कड़क सुनी,रखी उंगली कानों में
काश कोई लौटा दे मेरे , बचपन की वो कमाई
बचपन की यादें सारी, आंँखों के सम्मुख छाई

बूंद पड़ी ज्यों वसुंधरा पर, सौंधी खुशबू आई
बचपन की यादें सारी, आंँखों के सम्मुख छाई

इंदु वर्मा

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