Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
10 Apr 2021 · 1 min read

सिंहनाद छंद "विनती"

हरि विष्णु केशव मुरारी।
तुम शंख चक्र कर धारी।।
मणि वक्ष कौस्तुभ सुहाये।
कमला तुम्हें नित लुभाये।।

प्रभु ग्राह से गज उबारा।
दस शीश कंस तुम मारा।।
गुण से अतीत अविकारी।
करुणा-निधान भयहारी।।

पृथु मत्स्य कूर्म अवतारी।
तुम रामचन्द्र बनवारी।।
प्रभु कल्कि बुद्ध गुणवाना।
नरसिंह वामन महाना।।

अवतार नाथ अब धारो।
तुम भूमि-भार सब हारो।।
हम दीन हीन दुखियारे।
प्रभु कष्ट दूर कर सारे।।
================

“सजसाग” वर्ण दश राखो।
तब ‘सिंहनाद’ मधु चाखो।।

“सजसाग” = सगण जगण सगण गुरु
112 121 112 2 = 10 वर्ण
चार चरण। दो दो समतुकांत
********************

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया

Loading...