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24 Mar 2021 · 1 min read

पिता जी का साया

*** पिता जी का साया ***
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पिता जी की छत्रछाया है,
कभी भी साथ न पराया हैं।

लू गम की जरा न लग पाए,
बरगद सी शीतल छाया है,

बेशक कभी नहीं है दर्शाते,
तन मन में प्रेम समाया है।

संघर्ष में जीवन बीत गया,
सीने में दर्द छिपाया है।

मुख से दिखते हँसते हुए,
गमों का बोझ उठाया है।

जिम्मेदारी में सांसे लेते,
चैन की सांस न ले पाया है।

औरों को खुश करते करते,
खुद आपार कष्ट पाया है,

सभी को समझते समझाते,
उन्हें कोई न समझ पाया है।

चिंताओं से सदा घिरे रहते,
सुख का पल कहाँ आया है।

भार्या ने है साथ छोड़ दिया,
स्वयं को अ केला पाया है।

धन माया का है लोभ नहीं,
औलाद पर सब लुटाया है।

जन्मदिन हर साल है आए,
फ़ुर्सत में नहीं मनाया है।

चाहे कैसी भी हो परिस्थिति,
हर फर्ज सदैव निभाया है।

मनसीरत जन्म कीबधाई दे,
पिता का सिर पर साया है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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