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20 Mar 2021 · 1 min read

बसंती दोहे

खुशियों की शुरुआत है, हुआ गमों का अन्त।
बाग, खेत खलिहान में, दिखने लगा बसंत।

हरित वस्त्र धारण किये, विटप किए सिंगार!
भौरे गुंजन कर रहे, गाते राग मल्हार!

कोयल कीे मृदु कूक है, बौराये हैं आम।
मद मस्ती सी छा रही, हर पल सबहो शाम।

जिनके पिउ परदेश में, निश-दिन तड़पें नैन।
पपिहा बोले पिउ कहाँ, नहीं परत है चैन।

खिलें रंग जब प्रकृति के, चढ़े होरिया रंग।
बिरहन भूले बेदना, लगे अंग जब रंग।

……. ✍ सत्य कुमार ‘प्रेमी’

Language: Hindi
2 Comments · 939 Views
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