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22 Feb 2021 · 1 min read

वो मस्त बहारें

रुत बासंती बीत चली , बदला वन का रूप ।
शीतल हवा उष्ण हुई , लगे चटक सी धूप ।।
***
पतझर की बेदर्द रुत , छीनी मस्त बहार ।
शाख , शाख सूनी भई , कौन करे श्रृंगार ।।
***
सन – सन करती हवा बहे , खूब मचाए शोर ।
बिन पत्तों के पेड़ पर , चले न उसका जोर ।।
***
हरियाली सब खा गई , पतझर की यह रीत ।
बिन पत्तों के पवन भी , कैसे गाए गीत ।।
***
पत्र विहीन तरुवर भए , पीर सही न जाए ।
दूर कहीं सेमल खड़ा , शूल बीच मुस्काए ।।
***
झर – झर पत्र जमीन बिछे , बदली वन तस्वीर ।
पगडंडी गुमनाम सी , खोजे पथिक अधीर ।।
***
पतझर में न छांव कहीं , पंछी भए उदास ।
मृग वनचर विकल भए , ढूंढे मिले न घास ।।
***
सुर्ख सुलगती कोपलें , पतझर का श्रृंगार ।
किंशुक कुसुम सनेह से , मुस्काता हर बार ।।
***
पतझर की जादूगरी , देखे सकल जहान ।
कहीं पात आंसू झरै , कहीं किंशुक मुस्कान ।।
***
आम्र कुंज सजने लगे , विरहा हिय बेजार ।
कोकिल कुहु कुहु कूकती , अमराई गुलजार ।।
***
अशोक सोनी
भिलाई ।

Language: Hindi
2 Likes · 4 Comments · 374 Views

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