मैं आदमी बनूंगा
बच्चों से बात करने में बड़ा आनन्द आता है। उनकी प्यारी-प्यारी बातें , उनके अपने सपने ,बहुत ही निश्छल होते हैं। बहुत बरस हुए ऐसे ही एक दिन मेरे आस-पास कुछ बच्चे बैठे हुए थे। इधर उधर की बातें , हंसी ठिठोली , आनंद ही आनंद । इसी बीच जो सर्वदा स्वाभाविक होता है ,वह चर्चा कि तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो। मैंने एक-एक कर सभी से पूछा , किसी ने कहा मैं बहुत बड़ा साहब बनूंगा किसी ने कहा डाक्टर , किसी ने इंजीनियर , सबके अलग-अलग बेफिक्र सुहाने सपने । उनकी बातों में बड़ा आनन्द आ रहा था। उनमें चार पांच बरस का एक बच्चा , मैंने उससे भी पूछा , तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो। बच्चा तपाक से बोला , मैं बड़ा होकर आदमी बनूंगा । सब बच्चे हंसने लगे । किसी ने कहा ,अरे तू अभी आदमी नहीं है क्या । कोई बोला अरे , अभी लड़की है क्या । किसी ने हंसते हुए कहा , ये न बड़ा होकर बड़ी-बड़ी मूंछों वाला आदमी बनेगा । पर वह बालक बिलकुल शांत रहा। कई बरस बाद भी मुझे उसकी बातें याद है। वह बालक भी याद है। जीवन की भागदौड़ में उससे बहुत कम मुलाकात हो पाई। किन्तु कुछ दिनों पहले उससे मुलाकात हुई । उसने इंजीनियरिंग की परीक्षा पास कर बहुत अच्छी नौकरी ज्वाइन कर ली थी , किंतु अच्छी खासी तनख्वाह वाली
नौकरी छोड़ एक छोटे-से गांव में कृषि फार्म काम कर रहा है। बहुत सारे लोगों को काम मिला हुआ है। पिछले दिनों उसके कृषि फार्म जाने का अवसर मिला । देखकर बहुत खुशी हुई , वहां काम करने वालों से बात हुई सब बहुत खुश और संतुष्ट । उसके पिता तो नहीं रहे किंतु वह बालक जो बड़ा होकर आदमी बनना चाहता था। अपनी मां और अपने साथी कर्मियों के साथ संतुष्ट और प्रसन्न है । उसके आदमी बनने की सार्थकता शायद यही है।
अशोक सोनी
भिलाई ।